1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

विदेशों से कामगारों को जर्मन गांवों में बुलाने की चुनौती

फिलिप बुबेनहाइमर
१९ सितम्बर २०२३

जर्मनी के ग्रामीण इलाकों से काम करने वाली छोटे और मध्यम आकार की कंपनियां कामगारों की भारी कमी से जूझ रही हैं. वैसे तो पूरी जर्मनी में ही कामगार नहीं मिल रहे लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह कमी और ज्यादा है.

https://p.dw.com/p/4WUvy
जर्मनी के ग्रामीण इलाकों की कंपनियां कामगारों की कमी से जूझ रही हैं
भारत के कुंजन पटेल इंजीनियर हैं और जर्मनी के ग्रामीण इलाके की एक कंपनी में काम कर रहे हैंतस्वीर: Filip Bubenheimer

रोजेनश्टाइन के किले से कोई यात्री जब नीचे हॉयबाख कस्बे को देखे तो उसे जरा भी अंदेशा नहीं होगा कि उसकी नजरों के सामने इंजीनियरिंग की दुनिया की एक अहम जगह है. खेतों और जंगलों के बीच छोटे छोटे टाउन बसे हुए हैं.

30 साल के भारतीय इंजीनियर कुंजन पटेल पढ़ाई करने के बाद यहीं काम कर रहे हैं. ईस्ट वुर्टेमबर्ग का यह कस्बा श्टुटगार्ट से महज एक घंटे की दूरी पर है. पटेल को यह जगह खूब पसंद है, "यह इंजीनियरों के लिए बेहतरीन इलाका है. यहां कई दिलचस्प कंपनियां हैं और हर कंपनी के काम का अपना अलग तरीका है."

जर्मनी में विदेशी कामगारों का आना आसान करने वाला प्रस्ताव पास

ईस्ट वुर्टेमबर्ग में करीब 4,50,000 लोग रहते हैं. यह जगह बर्लिन से दोगुनी बड़ी है. यहां कई सफल कंपनियां है और उनमें 300 से ज्यादा ऐसी हैं जो औजार बनाने, मैकैनिकल या फिर प्लांट इंजीनियरिंग से जुड़ी हैं. यही बात इस जगह को उन जर्मन इलाकों में शामिल करती है जो ग्रामीण होने के बावजूद आर्थिक रूप से काफी अहम हैं. जर्मनी की सरकार के मुताबिक यहां के ग्रामीण इलाके देश की जीडीपी में आधे की भागीदारी रखते हैं, जो 2022 में करीब 3.9 लाख करोड़ यूरो थी.

युवा गांव से शहरों की तरफ जा रहे हैं और कई ग्रामीण इलाकों की आबादी शहरी इलाकों की तुलना में ज्यादा तेजी से बूढ़ी हो रही है. इसका मतलब है कि ग्रामीण इलाकों को ना सिर्फ शहरों से बल्कि विदेशों से भी कामगारों को अपने यहां लाना होगा.

ग्रामीण इलाकों की कंपनियों के लिए कामगार ढूंढना और मुश्किल है
बुर्ग रोजेन्श्टाइन से हॉयबाख का नजारा कुछ ऐसा दिखता हैतस्वीर: Filip Bubenheimer

हालांकि प्रवासी कामगारों को पारिवारिक जुड़ाव नहीं मिलता जो बहुत से जर्मन मूलवासियों के जीवन में थोड़ा स्थिर होने के बाद ग्रामीण इलाकों की ओर लौटने का कारण बनता है. करियर के लिए अनिश्चितता के साथ ही कम विविधता और ज्यादा रुढ़िवादी आबादी के बीच कम संतुष्टि देने वाला सामाजिक जीवन भी शायद उन्हें इससे थोड़ा दूर रखता है.

विदेशी कामगारों की भर्ती में स्थानीय यूनिवर्सिटियों की बड़ी भूमिका

कुंजम पटेल रिष्टर लाइटिंग टेक्नोलॉजीज के लिए काम करते हैं. यह कंपनी 10 हजार लोगों की आबादी वाले हॉयबाख में उच्च दर्जे के लाइटिंग सिस्टम बनाती है. कंपनी में 34 देशों के 110 लोग काम करते हैं. पटेल ने 2019 में यहां काम करना शुरू किया. उन्हें आलेन यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय छात्रों के समूह के साथ नौकरी पर रखा गया. तब वह वहां अपनी मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रहे थे.

ईस्ट वुर्टेमबर्ग चैंबर ऑफ कॉमर्स के एंड इंडस्ट्री के मार्कुस श्मिड कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों को डिग्री मिलने के बाद रुकने तैयार करना विदेशी ग्रेजुएटों को इस इलाके की ओर आकर्षित करने का सबसे असरदार तरीका है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने बताया कि इलाके में खासतौर से छोटी और मध्यम दर्जे की कंपनियों के लिए विदेशों से संभावित उम्मीदवारों तक पहुंचने के कम ही तरीके हैं.

 हर कंपनी अलग तरीके से अपने कामगारों को लुभाने में जुटी है
रिष्टर लाइटिंग टेक्नोलॉजीज के प्रमुख बर्न्ड रिष्टरतस्वीर: Filip Bubenheimer

इसी तरह के इलाकों की बड़ी ग्लोबल कंपनियों के लिए उतनी समस्या नहीं है क्योंकि वे भारी भरकम और महंगे नियुक्त अभियान का खर्च उठा सकती हैं. इसके अलावा नियोक्ता के रूप में उनके पास एक ब्रांड भी होता है. लेंस बनाने वाली जाइस कंपनी का मुख्यालय ईस्ट वुर्टेमबर्ग में ही है. कंपनी में मानव संसाधन के कॉर्पोरेट हेड जॉर्ज फॉन एरफा कहते हैं, "फिलहाल कुशल कामगारों की हम अपनी जरूरत पूरी कर पा रहे हैं, इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय श्रम बाजार में हमारी गतिविधियां भी हैं."

छोटी कंपनियों को अपना तरीका खुद विकसित करना पड़ता है

कम संसाधन होने की वजह से रिष्टर लाइटिंग के मालिक बर्न्ड रिष्टर ने कंपनी के कामगारों में विविधता लाने और उन्हें अपने साथ जोड़े रखने के लिए अपने खुद के तरीके निकाले हैं. कई बार इसके लिए उन्हें निजी रूप से काफी कोशिश करनी पड़ती है. कभी कभी वह अपने नये कर्मचारियों को अपने घर पर बुला कर खातिरदारी भी करते हैं.

नियुक्ति के लिए रिष्टर का तरीका है वह "किसी चीज को छांटते नहीं हैं." उदाहरण के लिए जर्मन बोलने की क्षमता उनके लिए किसी को बाहर निकालने की वजह नहीं है. रिष्टर में कंपनी के कामकाज की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है जो कुंजन पटेल के लिए काफी संतुष्टि देने वाला था. उनका कहना है कि जर्मनी में रहने के लिए भाषा की चुनौती सबसे बड़ी है. रिष्टर कर्मचारियों को मुफ्त जर्मन क्लास भी मुहैया कराती है.

जर्मनी को काबिल लोगों की जरूरत है

हॉयबाख के मेयर जॉय आलेमाजुंग का कहना है कि वह प्रवासियों को यह महसूस नहीं कराते कि उन्हें सहन किया जाएगा बल्कि उन्हें स्वीकार करते हैं. आलेमाजुंग ने डीडब्ल्यू से कहा, "जब कोई मुझसे बात करे और मुझे अलग ना महसूस हो तो मुझे लगेगा कि मैं अपने घर में हूं." उनके पास खुद का अनुभव भी है. वह कैमरून से छात्र के रूप में जर्मनी आए थे.

कामगारों की कमी से निबटने के लिए जर्मनी ने खोले दरवाजे

आलेमाजुंग का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में एक-दूसरे से जोड़ने वाला जीवन प्रवासियों की स्वीकार्यता बढ़ाने में मदद कर सकता है क्योंकि यह नये आने वाले और स्थानीय लोगों के बीच मेलजोल के मौके मुहैया कराता है. इस लिहाज से देखा जाए तो ग्रामीण इलाकों के पास शहरों से ज्यादा बेहतर स्थिति है. कुंजन पटेल का कहना है कि ईस्ट वुर्टेमबर्ग की जीवनशैली से वह काफी संतुष्ट हैं.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि कंपनी और कंपनी के बाहर कई कार्यक्रम होते हैं तो, "सामाजिक जीवन अच्छा है" पटेल आल्ब के पहाड़ों में हाइकिंग का मजा लेते हैं. उन्होंने कहा, "मुझे गर्मियों में आल्ब बहुत पसंद है."

पटेल के बॉस के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है. बर्न्ड रिष्टर कहते हैं ईस्ट वुर्टेमबर्ग में कामगारों को आकर्षित करने का मतलब यह पता लगाना है कि "कौन यहां आकर सचमुच परिपूर्ण होगा."