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कामगारों की कमी से निबटने के लिए जर्मनी ने खोले दरवाजे

२९ मार्च २०२३

जर्मन सरकार ने कामगारों की कमी से निपटने के लिए नये बिल के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. यह कुशल युवा कामगारों के लिए जर्मनी आकर काम करना आसान बनायेगा. जर्मनी में लाखों की संख्या में कुशल कामगारों की जरूरत है.

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Deutschland Asylpolitik | Duldung | Aufenthaltsrecht
तस्वीर: Wolfgang Kumm/dpa/picture alliance

लोहा बनाने वाली एक कंपनी में अप्रेंटीस करने की वजह से स्टीवन मायलट को जर्मनी में नौकरी का मौका मिल गया. हिंद महासागर में फ्रेंच द्वीप रियूनियन से जर्मनी के आइजेनहुएटेनश्टाट आने पर माइलट को अच्छा वेतन और आगे के लिए बढ़िया संभावना भी मिली. 23 साल के माइलट जैसे युवा ट्रेनी के जर्मनी आने से आर्सेलर मित्तल कंपनी को भी राहत मिली है. कंपनी की जर्मन शाखा के प्रमुख राइनर ब्लास्चेक कहते हैं कि युवा ट्रेनियों का मिलना मुश्किल होता जा रहा है.

कुशल कामगारों की कमी

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में कारोबारियों के लिए कुशल कामगारों को ढूंढना बड़ा सिरदर्द बन गया है. बड़ी संख्या में जर्मन कर्मचारी रिटायरमेंट की तरफ जा रहे हैं. चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सरकार जर्मनी की बूढ़ी होती आबादी की चुनौतियों से जुड़े सवालों का जवाब ढूंढने के लिए संघर्ष कर रही है. इंस्टीट्यूट फॉर एंप्लॉयमेंट रिसर्च के मुताबिक साल 2022 के अंत तक करीब 20 लाख पद खाली पड़े रह गये. इसी महीने चांसलर शॉल्त्स ने संसद को बताया कि जर्मनी में जो कामगार हैं उनसे इस कमी को भर पाना संभव नहीं होगा. चांसलर ने कहा, "हम आप्रवासन के कानूनी रास्तों को खोल कर तत्काल जरूरी कामगारों को लुभाएंगे भी."

कामगारों की कमी से जूझता जर्मनी
जर्मनी में लाखों नौकरियों के लिए कुशल कामगारों की जरूरत हैतस्वीर: Ralph Peters/imago images

यूरोपीय संघ में नौकरी ढूंढने वाले माइलट जैसे युवा वीजा की अतिरिक्त मुश्किलों का सामना किये बगैर जर्मनी में पहले से ही काम कर  सकते हैं. हालांकि इसके बाद भी मानव संसाधन की कमी हो रही है. बुधवार को शॉल्त्स की कैबिनेट ने एक नये बिल के प्रस्ताव पर दस्तखत किये जिसके जरिये आप्रवासन के नियमों को आसान  बनाया जा रहा है. इसका मकसद ज्यादा से ज्यादा युवा कामगारों को जर्मनी आने के लिए लुभाना है. इस बिल में उपयुक्त लोगों को वीजा के लिए प्वाइंट आधारित सिस्टम बनाने की बात है. इसमें जर्मन भाषा बोलने की क्षमता, नौकरी के लिए योग्यता और उम्र के आधार पर प्वाइंट दिये जाएंगे.

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पूरे देश की समस्या

गृह मंत्री नैंसी फाएजर ने संसद में बिल पेश करते हुए कहा, "हमारी अर्थव्यवस्था को कई सालों से जिन कुशल कामगारों की जरूरत है हम उन्हें देश में लाना सुनिश्चित करेंगे." फाएजर ने यह भी कहा कि नया सिस्टम "ब्यूरोक्रैसी की बाधाएं दूर" करेगा और "कुशल कामगारों को जर्मनी आकर तुरंत काम शुरू करने की सुविधा देगा."

आइजेनहुएटेनश्टाट एक मॉडल सिटी है जिसे समाजवाद के आधार पर लोहे की कंपनी में काम करने वालों के लिए बसाया गया था. माइलट ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में माना कि वह अपने घर को याद करते हैं लेकिन यह भी कहा, "करियर के विकास के लिए मुझे यहां रहना होगा." आर्सेलर मित्तल कंपनी में यहां करीब 2700 लोग काम करते हैं. हर साल उन्हें 50 नये ट्रेनी की जरूरत होती है. कंपनी के लिए काम करने वालों में ज्यादातर यहां पहले से ही रहते हैं लेकिन बहुत से लोग बाहर से भी आते हैं. पूर्वी जर्मनी में नये कामगारों को ढूंढना खासतौर से ज्यादा मुश्किल है. पश्चिमी जर्मनी के मुकाबले यहां आया कम है और इसके साथ ही इसकी छवि भी ऐसी है कि यह बाहरी लोगों को कम पसंद करता है.

बूढ़ी होती आबादी के कारण कामगारों की कमी बढ़ती जा रही है
चांसलर शॉल्त्स की सरकार कामगारों की कमी से निपटने के उपाय करने में जुटी हैतस्वीर: Johanna Geron/REUTERS

शरणार्थियों से भी नहीं बनी बात

हालांकि कुशल कामगारों या काम सीखने वालों को ढूंढने की चुनौती पूरे जर्मनी में है. अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में इस चुनौती की आंच महसूस की जा रही है. 2015-16 के शरणार्थी संकट के दौरान 10 लाख से ज्यादा लोग जर्मनी आये. इसी तरह यूक्रेन से भी  बीते एक साल में 10 लाख से ज्यादा लोग आ चुके हैं. हालांकि इसके बाद भी यह कमी पूरी नहीं हो सकी है. थिंक टैंक आईएफओ ने जनवरी में जिन कंपनियों का सर्वे किया उनमें से 44 फीसदी का कहना है कि वो कामगारों की कमी से जूझ रहे हैं.

इस कठिन परिस्थिति को देखते हुए चांसलर शॉल्त्स कामगारों से आग्रह कर रहे हैं कि वो समय से पहले रिटायरमेंट ना लें. इसके अलावा कई नये क्षेत्रों में कंपनियां रोबोट के साथ काम करने के लिए प्रयोग कर रही हैं. श्रम मंत्री हुबर्टस हाइल का कहना है कि युवा ट्रेनियों को रोकने के लिए सही ट्रेनिंग देना जरूरी है. हाल ही में आर्सेलर मित्तल के दौरे में उन्होंने युवा ट्रेनियों से मुलाकात की थी.

कामगारों की कमी के अलावा प्रदूषण फैलाने वाले स्टील जैसे उद्योगों को अगले दशक में ग्रीन टेक्नोलॉजी की तरफ जाने की चुनौती से भी जूझना होगा. आर्सेलर मित्तल जीवाश्म ईंधन से चलने वाले ब्लास्ट फर्नेस की जगह 2026 तक नया फर्नेस लगाने की योजना बना रहा है जो हाइड्रोजन और बिजली से चलेगी. ब्लास्चेक का कहना है कि नयी तकनीक से कुछ नौकरियां जाएंगे लेकिन साथ ही नयी नौकरियां पैदा भी होंगी जिन्हें भरने की चुनौती होगी.

एनआर/ओएसजे (एएफपी)