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भारत के आम चुनाव में विदेश नीति कितना बड़ा मुद्दा

रामांशी मिश्रा
७ मई २०२४

भारतीय प्रवासियों की संख्या बढ़ने के साथ भारत की घरेलू राजनीति में विदेश नीति की चर्चा जोर पकड़ने लगी है. हालांकि अभी यह मुद्दे शायद इतने प्रभावी नहीं हैं कि सारे लोग इनके आधार पर मतदान करने लगें.

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जी20 की बैठक के दौरान दिल्ली आए दुनिया के नेताओं के साथ राजघाट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री मोदी विदेश नीति की चर्चा भारत की चुनावी रैलियों में करते हैंतस्वीर: AFP

भारत के आम चुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के प्रयास में जुटी है, तो मुख्य विपक्षी दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने दस साल के राजनीतिक वनवास को खत्म करने के लिए कमर कसे हुए है. दोनों प्रमुख दल जनता को लुभाने के लिए अपने-अपने दांव आजमा रहे हैं. इसी कड़ी में एक मोर्चा विदेश नीति का भी है.

भारत की भौगोलिक स्थिति और बदलते वैश्विक ढांचे में उसकी बढ़ती भूमिका एवं आकांक्षा के कारण विदेश नीति का चुनाव में चर्चा पहले से कुछ ज्यादा होने लगी है. इस समय विश्व के कई हिस्सों में तनाव एवं टकराव की स्थिति से भी इसका महत्व बढ़ा है. बीजेपी के साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में विदेश नीति को खासी प्राथमिकता दी है

पड़ोसियों से भारत के रिश्ते पर चीन का साया

बढ़ता महत्व और नीतिगत निरंतरता

दोनों राष्ट्रीय दलों ने पड़ोसी देशों के अलावा विश्व में भारत की छवि और नए वैकल्पिक वैश्विक नेतृत्व में उसकी अपेक्षित भूमिका जैसे बिंदुओं को अपने घोषणा पत्र में जगह दी है.

सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च में फेलो और राजनीतिक विश्लेषक राहुल वर्मा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "कुछ समय पहले तक भारत में विदेश नीति का अर्थ मुख्य रूप से भारत-पाकिस्तान संघर्ष या उस संदर्भ में कश्मीर पर केंद्रित था, बीच-बीच में कभी चीन उभर आता था, लेकिन पिछले दस-पंद्रह वर्षों में विदेश नीति पर मुख्यधारा और घरेलू राजनीति में अधिक चर्चा होने लगी है.”

बेंगलुरू की चुनावी रैली में कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में आए लोग
कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी विदेश नीति को प्रमुखता से जगह दी गई हैतस्वीर: Idrees Mohammed/AFP/Getty Images

विदेश नीति पर दोनों दलों के दृष्टिकोण में अंतर के सवाल पर राहुल वर्मा कहते हैं, "दोनों दलों के स्वर में वैचारिक रूप से भले ही अंतर हो, लेकिन उनके रवैये अलग नहीं हैं. इस मामले में निरंतरता ही रही है." वर्मा ने यह भी कहा, "घोषणा पत्र में दोनों दलों ने एक जैसी बातें ही अलग-अलग तरीके से कही हैं. जैसे आतंकवाद को खत्म करने की बात कांग्रेस संवाद आधारित दृष्टिकोण के साथ करती है, तो बीजेपी आक्रामक रूख दिखाती है.”

पड़ोस को प्राथमिकता

भारत की सीमा चीन और पाकिस्तान से लगती है. दोनों के साथ ही नई दिल्ली के रिश्ते बहुत सहज नहीं रहे. चीन, भारत के पड़ोसी देशों पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है तो इससे भी भारत पर दबाव बढ़ रहा है. मालदीव के साथ तल्ख होते भारत के रिश्ते इसकी मिसाल हैं.

भारत के लिए पड़ोसियों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते और अपनी मजबूत छवि कायम करने के बीच संतुलन बनाने की चुनौती है. इस कड़ी में बीजेपी ने भरोसा दिया है कि वह एक जिम्मेदार एवं भरोसेमंद पड़ोसी की भूमिका में 'नेबरहुड फर्स्ट' की नीति पर कायम रहेगी.दूसरी तरफ कांग्रेस ने भूटान से लेकर बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ संबंधों में नई ताजगी लाने का वादा किया है.

मालदीव के संसदीय चुनावों में 'चीन रहा विजेता'

सीमा पार आतंकवाद भी भारत में एक बड़ा मुद्दा है. चीन और पाकिस्तान की सीमा पर बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाने का वादा भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में किया है. इस संदर्भ में सामरिक विश्लेषक एवं नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में वाइस-प्रेसिडेंट हर्ष वी. पंत ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते कैसे होंगे, इस बारे में घोषणा पत्र में कोई रूपरेखा नहीं दी गई है. हालांकि मुझे लगता है बीजेपी का घोषणा पत्र यह कहना चाह रहा है, कि भारत के पास समस्याएं बहुत हो सकती हैं, लेकिन जो आकांक्षाएं और उन पर अमल की क्षमता है, वह निश्चित ही बड़े लक्ष्य पर केंद्रित हैं." 

सत्ताधारी दल ने आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक सहमति बनाने के लिए पुरजोर प्रयास करने का वादा भी किया है. 

पड़ोसियों के लिए खतरा बनी चीन की बढ़ती ताकत

वैश्विक नेतृत्व के लिए प्रयास

उथल-पुथल से गुजर रही दुनिया में भारत वैकल्पिक नेतृत्व के लिए प्रयास में लगा है. पिछले वर्ष जी-20 सम्मेलन के दौरान अफ्रीकी संघ को उसका सदस्य बनाने से लेकर ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों की आवाज बनने की भारत की कवायद से साफ है, कि वह अपना प्रभाव बढ़ाने में लगा है.

 चीन के नए सीमा कानून ने बढ़ाई भारत में चिंता

इसी कड़ी में बीजेपी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए प्रयास करने का वादा किया है. वर्मा का कहना है, "यह कोई नई बात नहीं और कांग्रेस भी लंबे समय से ऐसा करती आ रही है."

हालांकि समय के साथ इस मोर्चे पर दुनिया में राय बदल रही है. पंत का कहना है, "सुरक्षा परिषद से जुड़े सुधारों की लंबे समय से चर्चा हो रही है और उन्हें मूर्त रूप देना इतना आसान भी नहीं है, लेकिन बीजेपी ने इसे एक एस्पिरेशन गोल यानी आकांक्षी लक्ष्य की तरह चिह्नित कर उसके लिए अभियान चलाने के संकेत दिए हैं."

प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता को लेकर बार-बार सुधारों का आह्वान किया है. उनका कहना है कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश को वैश्विक नीति-निर्णयों से कैसे अलग रखा जा सकता है.

वैश्विक नेतृत्व के लिए मोदी और बीजेपी के प्रयासों पर पंत ने यह भी कहा, "मुद्दा यही है कि जो मल्टीलैटरल सिस्टम है उसमें बदलाव कैसे आए और उसमें जो ग्लोबल साउथ है उसकी आवाज और बुलंद हो. इस दिशा में बीजेपी का चुनावी घोषणा पत्र गतिशील विदेश नीति की ओर संकेत देता है."

इस के उलट कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वैश्विक सक्रियता को लेकर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं रणनीतिक स्वायत्तता को सम्मान देते हुए विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय साझेदारी को बढ़ाने की बात कही है.

नरेंद्र मोदी के लंदन दौरे में उनसे मिलने पहुंचा भारतीय प्रवासियों का दल
प्रधानमंत्री मोदी विदेश दौरों पर प्रवासी भारतीयों से मुलाकात करना नहीं भूलतेतस्वीर: Rob Pinney/ZUMA Press/IMAGO

प्रवासी भारतीय और मध्य वर्ग

प्रवासियों के अपने देश में धन भेजे जाने के मामले में इस समय भारत शीर्ष पर है. विश्व भर में प्रवासी भारतीयों का दायरा बढ़ा है. विदेश में अवसरों को लेकर भी मध्य वर्ग में आकर्षण बढ़ा है. बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी इन आकांक्षाओं को अपने पक्ष में भुनाने का भरसक प्रयास करते दिखाई पड़ते हैं. बीजेपी ने घोषणा पत्र में कहा है कि वह देश के हित में प्रवासी भारतीयों की भूमिका का अपेक्षित उपयोग करेगी और उन्हें जब भी सहायता की जरूरत होगी, उसमें तत्परता दिखाई जाएगी.

प्रधानमंत्री मोदी जिस देश में जाते हैं वहां बसे भारतवंशियों के लिए बड़े कार्यक्रम आयोजित करते हैं. इससे राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा पर राहुल वर्मा कहते हैं, "उन्होंने डायस्पोरा को अपने राजनीतिक चुनावी संदर्भ में मोबिलाइज करने की कोशिश की है. वह भले ही भाषण विदेश में दे रहे होते हैं, पर उसी समय वह भारत के लोगों को भी संबोधित कर रहे होते हैं. तो पहला, मध्यम वर्ग, दूसरा भारतवंशियों को लुभाने की कोशिश और तीसरा, इस समय ग्लोबल उथल-पुथल बढ़ रही है और सोशल मीडिया में उसकी चर्चाएं अधिक होने लगी हैं. कहा जा सकता है कि मिडिल क्लास में विदेश नीति की चर्चा कराने में यह अपना योगदान देता है."

हालांकि वर्मा इससे मतदाताओं के बहुत ज्यादा प्रभावित होने की उम्मीद नहीं रखते. वह कहते हैं,  "मुझे नहीं लगता कि हम अभी उस स्तर पर पहुंचे हैं, जहां लोग विदेश नीति के मसले पर वोट करने लग जाएंगे." हालांकि, बीजेपी ने इस बार के कैंपेन में एक सक्रिय रुख अपनाया है. जी-20 जैसे आयोजन से माहौल बनाने की कोशिश की है,लेकिन लगता नहीं कि यह मुद्दा चुनाव को इधर से उधर कर सकता है.