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बीजेपी-कांग्रेस की नाक का सवाल क्यों बनीं यूपी की ये सीटें?

समीरात्मज मिश्र
१५ मई २०२४

रायबरेली और अमेठी की सीटों पर बीजेपी कांग्रेस का ‘गढ़ तोड़ने’ का तमगा हासिल करने की कोशिश में है. अमेठी में पिछली बार राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी हरा चुकी हैं. इस बार इन दोनों सीटों पर किसका पलड़ा भारी है?

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फुर्सतगंज हवाई अड्डे पर राहुल और प्रियंका गांधी
रायबरेली और अमेठी में प्रियंका गांधी जम कर प्रचार कर रही हैंतस्वीर: AFP

कुछ ही दिन पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह रायबरेली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बोले, "रायबरेली में कमल खिला दो, चार सौ पार अपने आप हो जाएगा.”

उनके इस बयान से अंदाजा हो जाता है कि रायबरेली की इस सीट को जीतने की कितनी तीव्र अभिलाषा भारतीय जनता पार्टी में है. 2014 और 2019 के मोदी लहर में भी बीजेपी इस सीट को लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हार चुकी है. हालांकि अब उसे लगता है कि शायद जीत ले.

उधर कांग्रेस पार्टी अपने गढ़ को बचाने के लिए पूरे जोर-शोर से लगी है. आखिरी मौके पर पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी को मैदान में उतारा है. यहां से पिछले पांच चुनाव उनकी मां और कांग्रेस अध्यक्ष रह चुकीं सोनिया गांधी जीत चुकी हैं.

रायबरेली यूपी की एकमात्र सीट है जहां कांग्रेस पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में जीत मिली थी. 2019 के इस चुनाव में सोनिया गांधी ने बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को हराया था और वह इस बार भी उम्मीदवार हैं. वैसे दिनेश प्रताप सिंह और उनका परिवार कुछ साल पहले तक कांग्रेस पार्टी में ही था.

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प्रियंका गांधी का प्रचार

अमेठी और रायबरेली दोनों ही जगहों पर कांग्रेस पार्टी के प्रचार की मुख्य जिम्मेदारी पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी पर है. प्रियंका गांधी के भाषणों, दोनों ही सीटों से भावनात्मक जुड़ाव और प्रधानमंत्री के आरोपों का शालीन तरीके से जवाब देने की चर्चाएं खूब हो रही हैं. रायबरेली में तो वो देर शाम तक नुक्कड़ सभाएं कर रही हैं और लोग मोबाइल और टॉर्च की रोशनी में भी उन्हें सुन रहे हैं.

रायबरेली में एक सभा में प्रियंका गांधी ने कहा, "मैंने अपनी दादी को देखा है दुनिया से लड़ते हुए. पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए, दुनिया आलोचना करती रही लेकिन वह कभी किसी के सामने रोई नहीं. मोदी जी थोड़ी सी आलोचना सुनकर रोने लगे. इतने कमजोर हैं वो?”

फुरसतगंज एयरपोर्ट पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी
राहुल गांधी इस बार रायबरेली से चुनाव मैदान में उतरे हैंतस्वीर: AFP

अमेठी से उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा के समर्थन में मोहइया केसरिया की एक चुनावी सभा में प्रियंका गांधी ने अमेठी वालों को यह याद दिलाया कि उन्होंने राहुल गांधी को हरा दिया था. राहुल गांधी और पीएम मोदी की तुलना करते हुए उन्होंने कहा, "मोदी जी ने कभी आपकी परेशानी नहीं सुनी, लेकिन आपने जिसे हराया, वह यानी मेरे भाई राहुल गांधी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देशवासियों की समस्या सुनने के लिए चार हजार किलोमीटर पैदल चले हैं. यह विचारधारा और राजनीतिक सभ्यता का फर्क है.”

प्रियंका गांधी इससे पहले भी रायबरेली और अमेठी में प्रचार का जिम्मा संभाल चुकी हैं. वह अमेठी वालों को यह बताना भी नहीं भूलतीं कि कांग्रेस उम्मीदवार किशोरीलाल शर्मा उनके परिवार के सदस्य जैसे ही हैं.

रायबरेली में इंदिरा से राहुल तक

रायबरेली की बात करें तो यह सीट जब से अस्तित्व में आई, तभी से गांधी परिवार की सीट कही जाने लगी. 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते. 1957 में फिरोज गांधी फिर जीते. 1960 में फिरोज गांधी के निधन के बाद हुए उप-चुनाव और 1962 के आम चुनाव में यहां से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ा. 1962 में बैजनाथ कुरील ने जनसंघ उम्मीदवार तारावती को हराकर कांग्रेस की सीट बचाए रखी.

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1967 में रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी ने चुनाव जीता. यह उनका पहला लोकसभा चुनाव था. उससे पहले वो राज्यसभा के जरिए संसद में पहुंच चुकी थीं. इंदिरा गांधी ने 1971 में रायबरेली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण को हराया. राजनारायण ने इस चुनाव को हाईकोर्ट में यह कहकर चुनौती दी कि इंदिरा गांधी ने सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया.

1971 के बाद अगले लोकसभा चुनाव 1977 में हुए जब देश में आपातकाल का दौर खत्म हो चुका था. 1977 की जनता लहर में रायबरेली सीट से उतरीं इंदिरा गांधी को राजनारायण से ही हार का सामना करना पड़ा. तब राजनारायण भारतीय लोकदल के उम्मीदवार थे. 1980 में एक बार फिर इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से लड़ीं और जनता पार्टी की उम्मीदवार विजय राजे सिंधिया को भारी मतों से हराया. इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली के साथ ही आंध्र प्रदेश की मेंडक (अब तेलंगाना) सीट से भी चुनाव लड़ा. दोनों सीटें जीतने के बाद उन्होंने रायबरेली सीट से इस्तीफा दे दिया.

रायबरेली में बीजेपी का चुनाव कार्यालय
बीजेपी भी रायबरेली और अमेठी में अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटी हैतस्वीर: Madhav Singh

रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के इस्तीफे के बाद इस सीट पर उप-चुनाव हुए जिसमें नेहरू-गांधी परिवार से संबंध रखने वाले अरुण नेहरू यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीते. 1984 में भी अरुण नेहरू ही इस सीट से जीते. 1989 और 1991 में यहां से कांग्रेस की शीला कौल जीतीं जो रिश्ते में इंदिरा गांधी की मामी थीं.

हालांकि 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार विक्रम कौल की जमानत तक जब्त हो गई. 1996 और 1998 में  बीजेपी के अशोक सिंह को जीत हासिल हुई. इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कैप्टेन सतीश शर्मा की जीत के साथ रायबरेली सीट पर वापसी की. 

साल 2004 में जब राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति में कदम रखा तो सोनिया गांधी ने अमेठी सीट उनके लिए छोड़ दी और खुद रायबरेली से चुनाव लड़ने लगीं. 2004 का लोकसभा चुनाव सोनिया गांधी ने करीब ढाई लाख वोट से जीता और उसके बाद वो 2019 तक इस सीट से जीतती आ रही हैं. पिछली बार उनकी जीत का अंतर घटने पर भी डेढ़ लाख से ज्यादा था.

कांग्रेस की दावेदारी

इस बार राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी ने रायबरेली से उम्मीदवार बनाया क्योंकि सोनिया गांधी राज्यसभा सांसद निर्वाचित हो चुकीं थीं और ये तय हो गया था कि अब वो लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. अटकलें ये भी थीं कि यहां से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ेंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने यहां से दिनेश प्रताप सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि बीएसपी ने ठाकुर प्रसाद यादव को मैदान में उतारा है.

रायबरेली के पत्रकार माधव सिंह बताते हैं कि वैसे तो चुनाव में कांग्रेस पार्टी का ही पलड़ा भारी है लेकिन बीजेपी भी पूरी ताकत से मैदान में है. वो कहते हैं, "गांधी परिवार का कोई सदस्य यदि चुनावी मैदान में ना होता तो शायद लड़ाई कठिन होती लेकिन अब जबकि खुद राहुल गांधी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं तो लड़ाई लगभग एकतरफा है. बीजेपी दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराकर भी एक संदेश देना चाहते हैं. लेकिन इन सबके बावजूद उसके लिए लड़ाई कठिन है.”

रायबरेली में अपने घर के बाहर दिनेश प्रताप सिंह
रायबरेली में दिनेश प्रताप सिंह बीजेपी के उम्मीदवार हैंतस्वीर: Madhav Singh

वहीं, रायबरेली के ही रहने वाले सुरेश प्रसाद बताते हैं कि बीजेपी ने दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपने साथ मिला तो लिया है लेकिन उन नेताओं के बीच आपस में ही इतनी प्रतिद्वंद्विता है कि वो एकजुट नहीं हो पा रहे हैं. सुरेश प्रसाद कहते हैं, "बीजेपी उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह के नामांकन में बीजेपी की सदर विधायक अदिति सिंह, पूर्व एमएलसी राकेश प्रताप सिंह, सरेनी के पूर्व विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह जैसे लोग पहुंचे ही नहीं. ऊंचाहार के सपा विधायक भी अब बीजेपी के खेमे में हैं लेकिन वो भी बहुत दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, रायबरेली गांधी परिवार का गढ़ है, प्रियंका गांधी लगातार जनसंपर्क कर रही हैं, यहां लोग भावनात्मक रूप से गांधी परिवार से जुड़े हैं, ऐसे में राहुल गांधी को चुनाव जीतने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.”

अमेठी में आसान नहीं है मुकाबला

अमेठी की स्थिति इससे कुछ अलग है. वहां गांधी परिवार से करीब चार दशक से जुड़े किशोरी लाल शर्मा को कांग्रेस पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है, तो बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हैं. स्मृति ईरानी ने 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को करीब पचास हजार मतों से हराया था.

अमेठी के रहने वाले दुर्गेश मिश्र कहते हैं, "पिछले चुनाव में तमाम कांग्रेसी बीजेपी की तरफ चले गए थे लेकिन इस बार शायद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है. यहां के लोग चाहते थे कि राहुल गांधी चुनाव लड़ें लेकिन चूंकि किशोरी लाल शर्मा भी एक तरह से परिवार के ही सदस्य हैं इसलिए स्मृति ईरानी को चुनौती कड़ी मिल रही है. हालांकि स्मृति ईरानी भी पूरा जोर लगाए हुए हैं. उन्होंने अमेठी में अपना घर भी बनवा लिया है.”

अमेठी लोकसभा सीट तब चर्चा में आई थी जब 1977 में संजय गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा. उस साल तो संजय गांधी चुनाव हार गए लेकिन 1980 में उन्हें यहां से जीत मिली. उनकी असमय मृत्यु के बाद यहां से राजीव गांधी सांसद रहे. राजीव गांधी की मृत्यु के बाद 1999 में सोनिया गांधी ने पहला चुनाव अमेठी से ही लड़ा.  2004 से 2014 तक तीन बार यहां से राहुल गांधी चुनाव जीतते रहे. 2019 में राहुल गांधी हार गए. पिछले 25 साल में यह पहला मौका है जब गांधी परिवार का कोई सदस्य यहां से चुनावी मैदान में नहीं है.