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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

नजदीक आ गई प्रलय की घड़ी, इंसान के पास बचे हैं बस 90 सेकेंड

क्लेयर रोठ
२६ जनवरी २०२४

वैज्ञानिकों ने लगातार दूसरे साल 'डूम्सडे क्लॉक' को आधी रात, यानी 12 बजने से 90 सेकेंड पहले के वक्त पर सेट किया है. इसका मतलब है कि हम महाविनाश से सिर्फ 90 सेकेंड दूर हैं. आखिर इस घड़ी में 12 बजने पर क्या होगा?

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साल 1947 से हर साल वैज्ञानिक इस डूम्सडे घड़ी को रीसेट कर रहे हैं.
यहां तक कि कोरोना महामारी के दौरान भी यह "डूम्सडे क्लॉक" प्रलय से ज्यादा दूर था. तस्वीर: Carolyn Kaster/AP Images/picture alliance

दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के तुरंत बाद ‘द बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स' के सदस्यों ने "डूम्सडे," यानी प्रलय की घड़ी का आविष्कार किया. यह इस बात का प्रतीक है कि मानवता आधी रात, यानी दुनिया के अंत के कितने करीब है. शिकागो यूनिवर्सिटी में टंगी इस घड़ी के माध्यम से परमाणु युद्ध और जलवायु परिवर्तन के पास आते खतरे को भांपा जाता है.

साल 1947 से हर साल वैज्ञानिक घड़ी को रीसेट कर रहे हैं. इस साल वैज्ञानिकों ने लगातार दूसरे साल घड़ी की सूइयों को आधी रात से ठीक 90 सेकेंड पहले के वक्त पर सेट किया है. इससे पता चलता है कि दुनिया के सामने अभूतपूर्व खतरा बना हुआ है.

बुलेटिन ने कहा है कि उसने यूक्रेन में जारी युद्ध, परमाणु हथियारों में कटौती करने से जुड़े समझौते कम होने, 2023 को अब तक का सबसे गर्म साल घोषित करने और एआई के तेजी से विकसित होने के आधार पर यह समय सेट किया है. दरअसल एआई दुष्प्रचार को बढ़ा सकता है और वैश्विक स्तर पर भ्रामक सूचनाएं फैला सकता है.

कोरोना महामारी के तीन वर्षों के दौरान यह घड़ी आधी रात से 100 सेकेंड पहले पर स्थिर रही. पिछले साल घड़ी की सूई को 10 सेकेंड आगे बढ़ाकर 90 सेकेंड पर सेट किया गया था. इस साल भी वही समय सेट हुआ. यह अब तक आधी रात के सबसे करीब का समय है.

हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

‘द बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स' का कहना है कि यह एक प्रतीकात्मक घड़ी है, जिससे पता चलता है कि मानव जाति अपने समूल नाश से कितनी दूर है. रात 12 बजे का समय उस वक्त का प्रतीक है, जब प्रलय आएगा और जीवन नष्ट हो जाएगा.

दरअसल, अमेरिका के मैनहैटन परमाणु परियोजना पर काम करने वाले अल्बर्ट आइंस्टाइन, जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर और अन्य वैज्ञानिकों ने 1945 में शिकागो में बुलेटिन की स्थापना की थी. मैनहैटन परियोजना के तहत ही दुनिया में पहली बार परमाणु बम का आविष्कार हुआ और अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ये बम जापान पर गिराए थे.

बुलेटिन की स्थापना के दो साल बाद 1947 में इन वैज्ञानिकों ने "डूम्सडे क्लॉक" का आविष्कार किया. उस समय परमाणु हथियारों को मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता था. बुलेटिन का साइंस ऐंड सिक्योरिटी बोर्ड (एसएएसबी) मौजूदा वैश्विक खतरों की गंभीरता को तय करने के लिए डेटा का इस्तेमाल करता है, फिर यह तय करता है कि हम प्रलय के कितने करीब हैं.

जब 1947 में यह घड़ी बनाई गई थी, तब सबसे पहला समय 11.53.00 पर सेट किया गया था, यानी उस वक्त इंसान प्रलय से सात मिनट दूर था. हालांकि बाद में यह अवधि बढ़ गई थी और 1991 में शीत युद्ध के खत्म होने के बाद तो सबसे अधिक थी. उस समय 12 बजने में 17 मिनट बाकी थे. अब यह प्रलय के सबसे करीब आ चुकी है और हम सिर्फ 90 सेकेंड दूर हैं.

6 नवंबर, 1991 को "डूम्सडे क्लॉक" रीसेट करते डॉक्टर लेयोनार्ड रीजर.
26 नवंबर, 1991 को "डूम्सडे क्लॉक" रीसेट करते डॉक्टर लेयोनार्ड रीजर. रीजर उस वक्त ‘बोर्ड ऑफ द बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स' के अध्यक्ष थे. तस्वीर: Carl Wagner/Chicago Tribune/picture alliance

घड़ी का समय किस आधार पर सेट किया?

यह घड़ी मूल रूप से परमाणु हथियार से होने वाले खतरे पर केंद्रित थी. 2000 के दशक की शुरुआत से उन खतरों को भी ध्यान में रखा गया है, जो जलवायु परिवर्तन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की वजह से पैदा हो रहे हैं.

17 सदस्यों वाले एसएएसबी का कहना है कि वह ‘दुनिया में परमाणु हथियारों की संख्या और उनके प्रकार, वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सघनता, महासागर में अम्लता का स्तर और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि' जैसे आंकड़ों पर नजर रखकर समय को सेट करता है. बोर्ड यह भी ध्यान रखता है कि नेता, नागरिक और संस्थान इन खतरों का मुकाबला करने के लिए किस हद तक कोशिश कर रहे हैं.

आखिर इस घड़ी का मतलब क्या है?

"डूम्सडे क्लॉक" को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका उद्देश्य लोगों और संस्थानों को बेहतर कदम उठाने के लिए प्रेरित करना है. उन्हें आने वाले खतरों के बारे में सचेत करना है. जब अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए थे, तो उस हमले में लगभग एक लाख लोग मारे गए. वैज्ञानिक उसे परमाणु युग की शुरुआत कहते हैं.

तब से यह तर्क दिया जा रहा है कि वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि उन्होंने सामूहिक विनाश का एक हथियार बनाया है और यह घड़ी तकनीक के अनियंत्रित इस्तेमाल के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास था. इस घड़ी की स्थापना को आठ दशक पूरे होने वाले हैं. बुलेटिन के वैज्ञानिक कहते हैं कि घड़ी का उद्देश्य लोगों को डराना नहीं, बल्कि उन्हें जागरूक करना है.

जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ते आदिवासी

एसएएसबी बोर्ड का कहना है कि ऐसा लग सकता है कि घड़ी की सूई को आगे बढ़ने से रोकना किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है. हालांकि कुछ ऐसे काम हैं जिनकी मदद से हर व्यक्ति सूई को आगे बढ़ने से रोकने में अपनी भूमिका निभा सकता है.

बोर्ड ने कहा कि लोगों को ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल समझदारी से करना चाहिए, जो हमारे जीवन को नष्ट कर सकती हैं. लोगों को इन तकनीकों और इनसे जुड़े खतरों को लेकर अपने समाज को जागरूक करना चाहिए. आम जनता को पत्र लिखकर निंदा करनी चाहिए कि जीवाश्म ईंधन और परमाणु हथियार से जुड़ी तकनीकों पर सार्वजनिक धन ना खर्च किया जाए.