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विज्ञानउत्तरी अमेरिका

हाथ लगने वाली है असीम ऊर्जा की चाबी

१३ दिसम्बर २०२२

आज विश्व भर में परमाणु ऊर्जा न्यूक्लियर फिशन से पैदा की जाती है. इसमें काफी ऊर्जा खपती है और इससे सेहत और पर्यावरण की कई चिंताएं भी जुड़ी हैं. अब अमेरिका न्यूक्लियर फ्यूजन से असीम ऊर्जा पैदा करने वाले रिएक्टर ला रहा है.

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35 देशों के सहयोग से चल रहा अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट ITER
35 देशों के सहयोग से चल रहा अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट ITER तस्वीर: Clement Mahoudeau/AFP

कई दशकों से वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर फ्यूजन (नाभिकीय संलयन) पर आधारित रिएक्टरों को लेकर खूब प्रयोग किए हैं. हालांकि अब तक कोई अच्छा व्यावहारिक मॉडल विकसित नहीं हो सका है. अब पहली बार अमेरिका में रिसर्चरों ने इस मामले में बड़ी सफलता हासिल की है. अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने रविवार को कहा है कि वे इसी हफ्ते न्यूक्लियर फ्यूजन रिसर्च पर एक 'अहम वैज्ञानिक सफलता' की घोषणा करेंगे. 

इसके पहले ही ब्रिटिश अखबार फायनेंशियल टाइम्स ने खबर छापी है कि अमेरिका ने न्यूक्लियर फ्यूजन पर आधारित रिएक्टर बना लिया है. रिपोर्ट के मुताबिक इससे साफ, सुरक्षित और इतनी प्रचुर मात्रा में ऊर्जा बनेगी जिससे हम इंसानों की हर तरह के जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ही खत्म हो जाएगी. जीवाश्म ईंधनों को जलाना हमारी पृथ्वी पर जलवायु संकट को बढ़ाने की बड़ी वजह मानी जाती है.

न्यूक्लियर फ्यूजन से ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया
न्यूक्लियर फ्यूजन से ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया

फ्यूजन और फिशन में फर्क

कैलिफोर्निया की लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेट्री में एक ऐसा न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर बनाया है जिसमें "नेट एनर्जी गेन" होता है. इसका मतलब हुआ कि उस रिएक्टर को एक्टिवेट करने में जितनी ऊर्जा लगती है, उससे ज्यादा ऊर्जा पैदा होती है. आज तक के रिएक्टरों में ऐसा कभी नहीं हुआ है. दुनिया भर के परमाणु संयंत्रों प्लांटों में फिशन करवाया जाता है यानि नाभिकीय विखंडन कराया जाता है. एक भारी परमाणु के केंद्र को तोड़ कर उससे ऊर्जा बनाई जाती है.

वहीं फ्यूजन यानि नाभिकीय संलयन में दो हल्के हाइड्रोजन परमाणुओं को जोड़कर एक भारी हीलियम परमाणु बनाया जाता है, जिस दौरान बहुत ज्यादा ऊर्जा मुक्त होती है. आकाश के तारों में प्राकृतिक रूप से यही प्रक्रिया चल रही होती है. मिसाल के तौर पर, हमारे सौर मंडल के केंद्र में मौजूद तारे सूर्य की असीम ऊर्जा का भी यही राज है. हमें धरती पर फ्यूजन रिएक्टर को चलाने के लिए हाइड्रोजन को बहुत ज्यादा ऊंचे तापमान तक गर्म करना होता है और वो भी खास उपकरणों के अंदर.

अमेरिका का तरीका

लॉरेंस लिवरमोर लैब के रिसर्चरों ने इसके लिए विशाल नेशनल इग्निशन फेसिलिटी का इस्तेमाल किया, जो तीन फुटबॉल के मैदानों के बराबर आकार की है. इसमें 192 महाशक्तिशाली लेजर लगाए गए जो कि हाइड्रोजन से भरे एक छोटे से सिलिंडर पर गिराये जाते हैं. इस प्रयोग में रिएक्टर को एक्टिवेट करने में 2.1 मेगाजूल ऊर्जा खर्च करने से 2.5 मेगाजूल ऊर्जा पैदा हुई जो कि लागत का 120 फीसदी है. ऐसे नतीजों से उस सिद्धांत की पुष्टि होती है जो दशकों पहले फ्यूजन रिसर्चरों ने दिया था.

फिशन की ही तरह, न्यूक्लियर फ्यूजन के दौरान भी कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता. दोनों प्रक्रियाओं में कई फर्क भी हैं. जैसे कि फ्यूजन के कारण परमाणु आपदा का कोई खतरा नहीं है और इससे रेडियोएक्टिव कचरा भी काफी कम निकलता है. अगर ये तरीका इस्तेमाल में आ जाता है तो धरती पर असीम ऊर्जा का एक ऐसा जरिया हाथ लग जाएगा जो कि तमाम परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का साफ और सुरक्षित विकल्प होगा.

धरती और पर्यावरण के लिए अच्छा

अमेरिका के सफल प्रयोग से एक रास्ता तो खुला है लेकिन इसे औद्योगिक स्तर तक लाने का रास्ता अभी लंबा है. जानकारों का कहना है कि इससे निकलने वाली ऊर्जा को अभी कई गुना बढ़ाने और प्रक्रिया को सस्ता बनाने की जरूरत है. मोटे तौर पर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसमें 20 से 30 साल और लग जाएंगे. वहीं लगातार गंभीर होते जलवायु परिवर्तन के संकट को देखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञ इसे जल्द से जल्द करने की जरूरत पर बल देते हैं.

अमेरिका के अलावा विश्व के कुछ और देश फ्यूजन आधारित परमाणु रिएक्टर बनाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं. इसमें 35 देशों के सहयोग से चल रहे अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट ITER का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, जो फ्रांस में चल रहा है. ITER इस तरीके में डोनट के आकार वाले चैंबर में मथे हुए हाइड्रोजन प्लाज्मा पर मैग्नेटिक कनफाइनमेंट तकनीक आजमाई जा रही है.

आरपी/एनआर (एएफपी)