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आतंकवादपाकिस्तान

देश के नए इलाकों में अपनी पकड़ बना रहा पाकिस्तानी तालिबान

५ मई २०२३

पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत के कुछ हिस्सों में आतंकी हमले बढ़ गए हैं. यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां अफगानिस्तान में अमेरिकी हमले के बाद तालिबान के शीर्ष नेताओं ने पनाह ली थी.

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तस्वीर: DW

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का गठन 2007 में हुआ था. यह पाकिस्तान में सभी स्थानीय आतंकवादी समूहों में सबसे घातक बन चुका है. यह बड़े पैमाने पर उत्तर-पश्चिमी प्रांत खैबर पख्तूनख्वाह, अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाकों, दक्षिणी बंदरगाह शहर कराची और पूर्वी पंजाब प्रांत के कुछ हिस्सों से अपनी आतंकी गतिविधियों को संचालित करता है और इन इलाकों में बड़े आतंकी हमलों को भी अंजाम दिया है.

अभी हाल तक यह संगठन बलूचिस्तान के पश्तून आबादी वाले इलाकों में हमले करने से परहेज करता था. यह इलाका प्रांतीय राजधानी क्वेटा से लेकर अफगानिस्तान की सीमा से लगे चमन और किला सैफुल्ला कस्बों और खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के बगल में झोब जिले तक फैला हुआ है. हालांकि, विशेषज्ञों और अधिकारियों ने डीडब्ल्यू को बताया कि अब ये इलाके भी आतंकी हमलों की जद में आ गए हैं. इन इलाकों में भी आतंकवादी हमले हो रहे हैं. इससे पता चलता है कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की वापसी के बाद से टीटीपी ने इस क्षेत्र के लिए अपनी रणनीति बदल दी है.

सुरक्षा मुद्दों को कवर करने वाले क्वेटा के पत्रकार शहजादा जुल्फिकार कहते हैं, "अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद टीटीपी पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है और आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है. साथ ही, अपने पुराने गढ़ खैबर पख्तूनख्वाह और उत्तरी-पश्चिमी कबायली इलाकों से बाहर बलूचिस्तान में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है.”

टीटीपी  कौन  है?

टीटीपी में कई कट्टरपंथी सुन्नी विद्रोही और सांप्रदायिक समूह शामिल हैं, जो 2007 के बाद से पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं. हालांकि यह संगठन सीधे तौर पर अफगान तालिबान से जुड़ा हुआ नहीं है, लेकिन उसके प्रति इसका झुकाव है.

टीटीपी की मुख्य मांगों में से एक यह है कि पाकिस्तान की सरकार और सेना देश के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में अपनी उपस्थिति कम करे. टीटीपी अक्सर उस क्षेत्र में हमला करता है, जहां सरकारी नियंत्रण अस्थिर होता है. इस समूह को देश भर में कई हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसमें हजारों नागरिकों और सुरक्षा बलों की मौत हुई है. अब तक का सबसे घातक हमला 2014 में पेशावर के एक स्कूल में हुआ था जिसमें कम से कम 150 लोग मारे गए थे. मारे गए लोगों में ज्यादातर स्कूली बच्चे थे.

पाकिस्तान ने 2008 में टीटीपी पर प्रतिबंध लगा दिया था. तब से देश के सुरक्षा बलों ने अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली क्षेत्रों में इस समूह के खात्मे को लेकर कई सैन्य अभियान चलाए हैं. टीटीपी को संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है.

हाल  में  बढ़  गए  हैं  आतंकी  हमले

अधिकारियों ने बताया कि 11 अप्रैल को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने क्वेटा के उपनगरीय इलाके कुचलक में टीटीपी के एक ठिकाने पर छापा मारा, जिसके बाद हुई गोलीबारी में चार अधिकारी और एक आतंकवादी कमांडर मारे गए. 9 अप्रैल को, टीटीपी ने कुचलक इलाके में एक पुलिस दल पर हमले की जिम्मेदारी ली, जिसमें दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी.

4 अप्रैल को, इस्लामवादी समूह ने कहा कि उसके आतंकवादियों ने कुचलक में एक पुलिस चौकी पर लेजर गन से हमला किया, जिसमें एक सरकारी अधिकारी की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए.

टीटीपी के ज्यादातर कमांडर और सदस्य पश्तून हैं. इस संगठन ने अपनी त्रैमासिक रिपोर्ट में दावा किया कि इस साल के पहले तीन महीनों में उसने क्वेटा में पांच, पिशीन में दो और बलूचिस्तान के किला अब्दुल्ला जिले में एक हमले को अंजाम दिया.

इसमें यह भी दावा किया गया कि उसने 2022 में बलूचिस्तान के पश्तून क्षेत्र में 12 हमले किए. ये हमले मई से सितंबर तक के चार महीनों के दौरान नहीं किए गए थे, क्योंकि इस समय अफगानिस्तान के तालिबान शासकों ने टीटीपी और पाकिस्तान सरकार के बीच संघर्ष विराम को लेकर समझौता कराया था.

28 नवंबर, 2022 को टीटीपी ने सरकार के साथ एकतरफा संघर्ष विराम के समझौते को समाप्त कर दिया था और इसके दो दिन बाद संगठन के सदस्यों ने क्वेटा में एक पोलियो टीकाकरण टीम की सुरक्षा कर रहे पुलिसकर्मियों पर आत्मघाती हमला किया, जिसमें चार लोग मारे गए और 30 से अधिक घायल हो गए.

टीटीपी के आंतरिक प्रकाशनों से पता चलता है कि समूह ने हाल ही में बलूचिस्तान के पश्तून क्षेत्र के लिए एक अलग संगठनात्मक चैप्टर ‘झोब प्रांत' का गठन किया है.

तालिबानी  नेताओं  के  लिए  शरण  स्थल

अमेरिका ने 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया था. इसके बाद, तालिबान के कई वरिष्ठ नेता देश छोड़कर भाग गए और इस दौरान समूह के प्रशासनिक निकाय की स्थापना की, जिसे ‘क्वेटा शूरा' कहा जाता है. हालांकि, पाकिस्तानी अधिकारियों ने हमेशा क्वेटा और आसपास के इलाकों में तालिबानी नेताओं की मौजूदगी से इनकार किया है.

वर्ष 2021 में अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता की वापसी के बाद, लगभग सभी तालिबानी नेता कथित तौर पर नई सरकार में जिम्मेदारियों को संभालने के लिए काबुल वापस चले गए.

कुचलक में मदरसा शिक्षक कारी सैयद जब्बार, जो क्षेत्र में तालिबान नेटवर्क से परिचित हैं, ने डीडब्ल्यू को बताया, "टीटीपी को तालिबानी नेतृत्व से स्पष्ट तौर पर आदेश मिला हुआ था, इसलिए वे इस क्षेत्र में किसी तरह की आतंकी गतिविधियों को अंजाम नहीं दे रहे थे. तालिबानी नेता इसी क्षेत्र में अपने परिवार के साथ रह रहे थे, अपने मदरसे और मस्जिद चला रहे थे और उनका कमांड और कंट्रोल सेंटर भी यहीं स्थापित था. लेकिन अब जब तालिबानी नेता अफगानिस्तान लौट आए हैं, तो टीटीपी ने इस क्षेत्र को पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ अपना नया युद्धक्षेत्र बना लिया है.”

कुचलक में, जहां टीटीपी ने हाल ही में कई हमले किए हैं वहां तालिबान के सर्वोच्च नेता मौलवी हैबतुल्लाह अखुंदजादा ने एक धार्मिक मदरसे में 10 साल से अधिक समय तक पढ़ाया. अगस्त 2019 में मदरसा मस्जिद में हुए बम विस्फोट में अखुंदजादा के छोटे भाई की मौत हो गई थी. इसी तरह, तालिबानी शासन के मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हकीम इशाकजई कथित तौर पर क्वेटा शहर में एक मदरसा चलाते थे. 

टीटीपी  का  विस्तार

विशेषज्ञों का कहना है कि बलूचिस्तान 2004 की शुरुआत से अलगाववादी विद्रोह की चपेट में है, लेकिन टीटीपी की हालिया घुसपैठ प्रांत की पहले से ही कमजोर सुरक्षा स्थिति को और खतरे में डाल रही है.

पाकिस्तान और चीन पहले से ही देश के अलग-अलग हिस्सों, खासकर बलूचिस्तान में अरबों डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त कर चुके हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि टीटीपी पश्तून समूह के अलावा, अब बलूच अलगाववादियों और अन्य समूहों को भी लुभाने की कोशिश कर रहा है. 12 अप्रैल को, टीटीपी ने दावा किया कि बलूचिस्तान के क्वेटा और कलात जिलों के दो नए आतंकी समूह उसके साथ शामिल हो गए.

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सुरक्षा मामलों पर नजर रखने वाले स्वतंत्र विश्लेषक तमीम बहिस के अनुसार, "अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है और टीटीपी बलूच अलगाववादियों के बीच अपने प्रभाव को बढ़ाने में सफल होता है, तो इसकी क्षमता काफी बढ़ जाएगी. इसे सैन्य तौर पर हराना काफी ज्यादा मुश्किल हो सकता है.”

पाकिस्तान पर केंद्रित ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की स्कॉलर मदीहा अफजल ने कहा कि पाकिस्तान के लिए टीटीपी एक बड़ा खतरा है और यह बढ़ रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद से टीटीपी का मनोबल बढ़ा है. साथ ही, देश में बढ़ी अस्थिरता ने भी उसे प्रोत्साहित किया है. पाकिस्तान सरकार कई वर्षों से समूह के साथ बातचीत करने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह वार्ता हमेशा विफल रही है, क्योंकि यह समूह सरकार और देश के मौजूदा संविधान का विरोध करती है.”

उन्होंने आगे कहा, "देश के पास एकमात्र विकल्प है कि वह समूह के खिलाफ व्यापक तौर पर सैन्य अभियान चलाए, जैसा कि 2014 में किया था. हालांकि, इस बार एक समस्या यह भी है कि टीटीपी देश की सीमा को पार कर तालिबान शासित अफगानिस्तान में शरण ले सकता है और वहीं से अपनी आतंकी गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है.”

रिपोर्ट: जियाउर रहमान (कराची)