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डिजिटल वर्ल्ड

साइबर धोखाधड़ी की वजह से बैंकों से उठ रहा है भरोसा

मनीष कुमार
२० अगस्त २०२१

थोड़ी सी चूक पर साइबर अपराधियों द्वारा बैंक अकाउंट खाली कर देने से लोग पहले से ही त्रस्त थे, किंतु अब बैंककर्मियों की मिलीभगत से खाते से पैसे उड़ा दिए जाने से लोगों का बैंकों पर से भरोसा उठने लगा है.

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तस्वीर: Jaipal Singh/dpa/picture alliance

जी हां, बिहार में लगातार ऐसी कई घटनाएं समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रहीं है. बैंककर्मियों की मिलीभगत के कारण खाताधारी की सभी गोपनीय सूचनाएं अपराधियों तक पहुंच जाती हैं, जिसके आधार पर साइबर गिरोह अकाउंट से संबद्ध फोन नंबर को या तो बदलवा देता है या फिर पोर्ट कर नया सिम जारी करवा लेता है. इसकी वजह से खाते से पैसे की निकासी का बैंक की तरफ से भेजा गया मैसेज उन तक नहीं पहुंच पाता है. खाताधारी को पैसा निकाले जाने के बारे में तब पता चल पाता है जब वे अपना पासबुक अपडेट करते हैं, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है.

सांसद निधि से भी निकाल लिए गए थे पैसे

अभी हाल में मुजफ्फरपुर में पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के करीब 300 ग्राहकों के खाते से बैंक के कैशियर ने ही अपराधियों से साठगांठ कर पांच करोड़ रुपये से अधिक गायब कर दिए. पुलिस ने इस संबंध में कैशियर नितेश कुमार के साथ कई अन्य को गिरफ्तार किया है. इसी तरह का मामला बक्सर जिले में सामने आया, जहां ग्रामीण बैंक के मैनेजर ने शेयर ट्रेडिंग का शौक पूरा करने के लिए करीब 200 लोगों के खाते से फर्जी चेक के जरिए एक करोड़ रुपये का गबन कर लिया. फर्जीवाड़े का मामला तब पता चला जब खाताधारी पैसा निकालने के लिए बैंक पहुंचे, जहां उन्हें खाते में पैसा नहीं होने की जानकारी दी गई. ग्राहकों की शिकायत पर जांच हुई और बैंक के मैनेजर रविशंकर कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

इसके पहले बिहार के महाराजगंज से सांसद जनार्दन प्रसाद सिग्रीवाल की सांसद निधि वाले खाते से क्लोन चेक के जरिए 89 लाख रुपये निकाल लिए गए थे. सांसद ने इस मामले में पूरे बैंक प्रबंधन को कटघरे में खड़ा किया. मूल चेक उसी अधिकारी के पास ही था जिसे चेक जारी करने का अधिकार था. छपरा स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा की मुख्य शाखा में सांसद क्षेत्रीय विकास कोष का खाता था. चेक की क्लोनिंग कर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के बैंक ऑफ बड़ौदा के खातेदार संदीप कोठारी के अकाउंट में पैसा ट्रांसफर किया गया था. मामला लोकसभा अध्यक्ष तथा गृह मंत्रालय तक पहुंचा. बाद में बैंक ने उनके खाते में निकासी की गई रकम जमा की.

इसी तरह का एक और मामला इंडियन बैंक की पटना विश्वविद्यालय शाखा में सामने आया, जहां पटना कॉलेज के खाते से 62.80 लाख रुपये क्लोन चेक के जरिए निकाल लिए गए. पटना कॉलेज के प्रिंसिपल ने इस मामले को लेकर इंडियन बैंक की शाखा प्रबंधक के खिलाफ एफआइआर भी दर्ज करवाई थी. यहां से लेकर गुजरात के नवरंगपुरा ब्रांच तक के बैंक कर्मी संदेह के घेरे में हैं. एक अन्य मामले में गया जिले में भारतीय स्टेट बैंक की मानपुर शाखा की महिला बैंक अधिकारी प्रीति सिंह ने स्वयं तथा अपने छह रिश्तेदारों के खाते में अन्य ग्राहकों के खाते से छह करोड़ 96 लाख रुपये ट्रांसफर करवा दिए. इस प्रकरण में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने सात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है.

कैसे निकाले जाते हैं पैसे

मुजफ्फरपुर में पंजाब नेशनल बैंक की शाखा में कैशियर की मिलीभगत से किए गए फ्रॉड में पता चला कि बैंक का कैशियर नितेश पहले उन खातों की पहचान करता था जिनमें मोटी रकम जमा रहती थी. वह पर्सनल कंप्यूटर पर बैंक की लॉग-इन आईडी से ऐसे खाताधारकों के संबंध में केवाईसी से संबंधित सारी गोपनीय जानकारी निकाल लेता था और उसे गिरोह के सदस्य को फारवर्ड कर देता था. इसके आधार पर गिरोह फर्जी आधार कार्ड तैयार कर लेता था. इस पर फोटो फर्जी आदमी का होता था और फिर इसके सहारे अकाउंट से लिंक मोबाइल फोन नंबर को दूसरी कंपनी में पोर्ट कराया जाता था. जाहिर है, नया सिम निकाले जाने के बाद संबंधित खाताधारी का फोन बंद हो जाता था और वह इसे नेटवर्क की समस्या समझता था.

इधर, जैसे ही पोर्ट किया हुआ नंबर काम करना शुरू करता था, बैंक का मोबाइल ऐप डाउनलोड कर ऑनलाइन ट्रांजेक्शन कर दिया जाता था. पुलिस ने इस गिरोह के कब्जे से नकदी के अलावा 12 मोबाइल फोन, तीन लैपटॉप व 20 आधार कार्ड जब्त किया है. पुलिस की जांच में यह भी पता चला है कि पंजाब नेशनल बैंक के सॉफ्टवेयर की एक छोटी सी गड़बड़ी की जानकारी बैंक कर्मी नितेश ने गिरोह को दे दी थी जिसका फायदा उठाकर कई लोगों के खाते से पैसे उड़ाए गए. इस गिरोह ने मुजफ्फरपुर शहर के दामुचक मुहल्ले की निवासी प्रो. मीना कुमारी के पंजाब नेशनल बैंक की गोबरसही शाखा के अकाउंट से एक करोड़ सात लाख रुपये गायब कर दिए.

इसके अतिरिक्त एक रिटायर्ड बीएसएनएल कर्मी रामदेव राम के खाते से 22 लाख से अधिक की राशि तथा वन विभाग के एक सेवानिवृत कर्मी के अकाउंट से 11 लाख से अधिक रकम की अवैध निकासी की गई. पटना मेडिकल कालेज अस्पताल में तैनात चिकित्सक डॉ. राधारमण के खाते से भी इस गिरोह ने पांच लाख रुपये उड़ा लिए थे. पकड़े गए साइबर अपराधियों ने छपरा, दरभंगा, वैशाली, मोतिहारी व सीतामढ़ी में भी किया गया अपराध स्वीकार किया है. पुलिस साइंस कॉलेज परिसर, गोबरसही स्थित पंजाब नेशनल बैंक के कैशियर नितेश कुमार को ही इस गिरोह का सरगना बता रही है. नितेश कुमार सिंह सहित मो. जफर इकबाल, मंजय कुमार सिंह तथा राजेश कुमार पुलिस की रिमांड पर हैं.

घोस्ट अकाउंट में ट्रांसफर की गई राशि

मुजफ्फरपुर के एसएसपी जयंत कांत के अनुसार, "बिहार में ऐसा पहली बार हुआ है जिसमें सिम कार्ड को स्वैप कर ऑनलाइन फ्रॉड किया गया है." पुलिस जांच में पता चला है कि इस गिरोह के द्वारा कोलकाता व बेंगलूर में 40 से अधिक घोस्ट खाते खोले गए हैं. पुलिस के अनुसार उन खातों को घोस्ट अकाउंट कहा जाता है जिन्हें खोलने के लिए किसी कंपनी के नाम का इस्तेमाल कर दिया जाता है. एसएसपी जयंत कांत के अनुसार, "इन खातों का डिटेल तो होता है, किंतु इनका संचालन कौन कर रहा है, यह पता नहीं होता." ये अकाउंट अधिकतर निजी बैंकों में खोले जाते हैं, जो ओपनिंग के समय जरूरी कागजातों की गंभीरता से जांच नहीं करते हैं.

अवैध ट्रांजेक्शन इन्हीं खातों में पैसा जमा किया जाता है. फिर हवाला के जरिए रकम गिरोह के सदस्य के पास भेजा जाता है. हवाला कारोबारियों द्वारा पैसा भेजने के एवज में बतौर कमीशन पचास प्रतिशत राशि लिए जाने की बात सामने आ रही है. पुलिस का दावा है कि कुछ हवाला कारोबारियों की पहचान कर ली गई है. अब तक की जांच में ऐसे 22 घोस्ट अकाउंट को फ्रीज कर दिया गया है. कोलकाता तथा बेंगलूर के एक दर्जन से अधिक बैंकों के अधिकारी भी जांच की जद में हैं. इन घोस्ट खातों से लिंक फोन नंबर तथा आधार नंबर के सहारे पुलिस इनके संचालकों तक पहुंचने में जुटी है. वहीं पंजाब नेशनल बैंक के मुजफ्फरपुर मंडल के प्रमुख संजय सिन्हा के अनुसार, "पुलिस को जांच में पूरा सहयोग किया जा रहा है. बैंक के स्तर से भी आंतरिक जांच जारी है. बैंक की जांच तथा पुलिस रिपोर्ट के आधार पर दोषी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाएगी."

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ग्राहकों के नुकसान से बचाने की चुनौती

बैंकिंग नियामक रिजर्व बैंक का निर्देश कहता है कि अगर आपके बैंक खाते से अवैध निकासी की जाती है तो तीन दिन के अंदर अगर बैंक को इसकी शिकायत की जाए तो ग्राहक को कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा. बशर्ते थर्ड पार्टी धोखाधड़ी बैंक या ग्राहक की चूक की वजह से नहीं, बल्कि बैंकिंग सिस्टम की किसी चूक की वजह से हुई हो. इसके साथ ही शिकायत की समय सीमा के अनुपात में बैंक की देनदारी तय की गई है. गृह मंत्रालय ने भी साइबर फ्रॉड से जुड़ी शिकायतों के निपटारे के लिए एक केंद्रीकृत हेल्पलाइन नंबर जारी किया हुआ है. इसका संचालन संबंधित राज्य की पुलिस द्वारा किया जाता है.

सरकार की माने तो इस हेल्पलाइन के जरिए बैंक तथा पुलिस को आपस में कनेक्ट होकर रियल टाइम एक्शन में मदद मिलेगी. शायद इसलिए एक निजी बैंक के रिटायर्ड क्षेत्रीय प्रबंधक कहते हैं, "ऐसी कोई भी व्यवस्था तब कारगर होगी जब तय समय सीमा के अंदर फ्रॉड के संबंध में पता चल जाए. यहां तो पता ही तब चलता है जब समय बीत जाता है. इस परिस्थिति में शिकायतों का हश्र क्या होगा." जाहिर है, ऐसी घटनाओं को रोकने और ग्राहकों को अपराधियों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बैंकिंग व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है.

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