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केरल में बच्चे जनना मांओं के लिए है अमेरिका से भी सुरक्षित

कार्ला ब्लाइकर
१९ जनवरी २०२४

2020 में दुनिया की करीब तीन लाख महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान जान गंवा दी. इनमें अमेरिका भी शामिल है, जहां मातृ मृत्यु दर बढ़ रही हैं. लेकिन भारत में ये दर (एमएमआर) नीचे आई है.

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मातृ मत्यु दर खतरनाक
मातृ मत्यु दर भारत में बेहतर स्थिति में हतस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance

प्रेग्नेंसी का मतलब नए जीवन से है- एक अनोखा अनुभव, एक बच्चे का दुनिया में आना, लेकिन बहुत सारे मामलों में प्रेग्नेंसी का मतलब जीवन का अंत भी है.

फरवरी 2023 के आखिरी दिनों में संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया में मांओं की मृत्यु पर एक नई रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे, बच्चा पैदा करने से हर दो मिनट में एक औरत की मौत हो जाती है. रिपोर्ट में प्रेग्नेंसी के दौरान अनुभव की जाने वाली मुश्किलों का भी जिक्र किया गया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लूएचओ के महानिदेशक टेडरोस गेब्रियासुस का कहना है, "ये त्रासद स्थिति है कि दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए, गर्भावस्था स्तब्ध कर देने वाली भयानकता का अनुभव है."

साल 2000 में, वैश्विक मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) 339 थी. मतलब प्रति लाख नवजातों के जन्म के मुकाबले,  339 गर्भवती मांओं ने दम तोड़ा था. 2020 में ये वैश्विक एमएमआर 223 थी. लेकिन संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक इस 20 साल की अवधि में कई देश अपने यहां मातृ मृत्यु दर को उल्लेखनीय रूप से कम करने में नाकाम रहे.

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट कहती है कि 2002 और 2025 के बीच थोड़ी सी गिरावट आई थी लेकिन 2016 के बाद से वैश्विक मातृ मृत्यु दर में ठहराव आ गया. रिपोर्ट के सह लेखक और डब्लूएचओ में वैज्ञानिक जेनी क्रेसवेल का कहना है कि ये अस्वीकार्य है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "अवरोध या ठहराव बिल्कुल भी काफी नहीं है. टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) वैश्विक मातृ मृत्यु दर को प्रति एक लाख जन्म के मुकाबले 70 मौतों से भी कम रखने का है. हम लोग इस लक्ष्य से अभी काफी पीछे हैं."

अमेरिका में बढ़ती मातृ मृत्यु दर

अमेरिका जैसे विकसित देशों समेत कई मुल्कों में, मातृ मृत्यु दर सालों से बढ़ती रही है. तमाम औद्योगिक देशों में अभी तक सबसे ज्यादा एमएमआर अमेरिका में ही हैं- 23 से ज्यादा. 2000 से 2020 के बीच ये दर कमोबेश 78 फीसदी बढ़ी है.

कुल संख्या इतनी कम है कि इसे देखते हुए हल्का सा बदलाव भी संख्या के प्रतिशत में काफी ज्यादा बढ़ोतरी कर देता है. लेकिन इससे ये तथ्य नहीं बदल जाता कि प्रेग्नेंसी के दौरान, बच्चा पैदा करते वक्त या उसके फौरन बाद होने वाली मौतों की संख्या, दुनिया के सबसे अमीर मुल्कों में से एक- अमेरिका में दशकों से बढ़ती ही जा रही है.

अमेरिका में गड़बड़ कहां है?

अमेरिका में स्वास्थ्य कल्याण से जुड़े मुद्दों पर स्वतंत्र रिसर्च को सहायता देने वाली फाउंडेशन, कॉमनवेल्थ फंड में वरिष्ठ शोधकर्ता मुनीरा गुंजा कहती हैं कि ये समझाना आसान नहीं कि अमेरिका में एमएमआर क्यों बढ़ रही है.

गुंजा कहती हैं कि इस स्थिति के लिए बहुत से कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिसमें ये भी शामिल है कि हाल के वर्षों में स्वास्थ्य से जुड़ी बहुत सारी समस्याओं का उभार देखने में आया है.

एक तथ्य ये भी है कि बहुत से अमेरीकियों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं होता और उनके पास डॉक्टर के पास जाने के पैसे नहीं होते. स्वास्थ्य सेवाओं की कीमत भी बढ़ चुकी है. ऐसी प्रशिक्षित दाइयों की भी कमी है जो  किसी की प्रेग्नेंसी के दौरान मदद कर सकें.

गुंजा का कहना है, "दूसरे विकसित देशों की तुलना में अमेरिका में चिकित्सा सुविधा का लाभ न लेने की दर नाटकीय रूप से बहुत ज्यादा है. ये सब चीजें इस अस्वीकार्य मातृ मृत्यु दर को बढ़ाने में अपना अपना योगदान देती हैं."

साथ ही, अश्वेत अमेरीकियों में एमएमआर गोरों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा है. गुंजा का कहना है कि ये बड़ा अंतर "ढांचागत नस्लवाद" की वजह से है. "अश्वेत अमेरिकी शुरुआत से ही नुकसान में रहते हैं- उनका रहन-सहन, उनकी शिक्षा का स्तर, उनकी नौकरी और तनख्वाह. और जब वे डॉक्टर के पास जाते हैं, तो उनका सामना प्रत्यक्ष नस्लवाद से होता है."

बहुत से स्तरों पर हेल्थ केयर में बदलाव

गुंजा कहती हैं कि अगर अमेरिका में ज्यादा सक्रिय दाइयां होती तो उससे एक बड़ा फर्क पड़ता. वे गर्भवती व्यक्ति से नजदीकी रिश्ता बना सकती हैं, घर पर उनकी देखभाल कर सकती हैं और प्रसवकाल के बाद मां की मनोदशा का ध्यान भी रख सकती है. क्योंकि उस अवधि में अमेरिका में आधा से ज्यादा मौतें होती हैं.

लेकिन क्लिनिकल और नीतिगत स्तरों पर भी बदलाव की जरूरत है. अमेरिका में स्वास्थ्य मुद्दों पर ध्यान देने वाले एनजीओ, काइजर फैमिली फाउंडेशन में महिला स्वास्थ्य नीति की सह निदेशक उषा रणजी का कहना है कि क्लिनिकल स्तर पर हेल्थकेयर प्रोफेश्नल्स को शिशु जन्म से पहले, जन्म के दौरान और जन्म के बाद पैदा होने वाले चेतावनी के निशानों को चिन्हित करने की जरूरत है. 

"गर्भवती मांओं की मौतों से जुड़े कारणों में डिलीवरी के दौरान या पश्चात् रक्तस्राव, सेप्सिस (खून में जहर फैलना), इकलैम्पसी और प्रि-इकलैम्पसी (शिशु को जन्म देने के दौरान दौरे पड़ना) भी शामिल हैं. ये चीजें अनदेखी रह जाती हैं, लेकिन जानलेवा हो सकती हैं.

रणजी कहती हैं कि डॉक्टरों और नर्सों की ट्रेनिंग में सुधार हुआ है, लेबर और डिलीवरी में काम करने वाले स्टाफ की ट्रेनिंग भी सुधरी है और मरीजों के साथ बेहतर संचार और उनकी बात सुनने पर ज्यादा जोर दिया जाने लगा है.

नीतिगत स्तर पर रणजी कहती हैं कि हर किसी को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाना बहुत जरूरी हैं क्योंकि अमेरिका में मां बनने की उम्र वाली 10 प्रतिशत महिलाएं अभी भी बीमा से वंचित हैं. नतीजतन उन्हें जिस किस्म की चिकित्सा देखभाल की जरूरत है वो नहीं मिल पाती.

रणजी कहती हैं, "गर्भवती होने से पहले ही उन्हें देखरेख में ले लेना जरूरी है, ताकि उनकी ओवरऑल सेहत अच्छी रहे. लेकिन स्वास्थ्य बीमा ही नहीं होगा तो देखरेख हो पाना मुश्किल हो जाता है."

भारत में मिली कामयाबी

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट कहती है कि दक्षिण एशिया दुनिया के उन चुनिंदा इलाकों में है जहां मातृ मृत्यु दर घट रही है. भारत की एमएमआर में सबसे बड़ा सुधार हुआ है. 2000 से 2020 के बीच भारत में मातृ मृत्यु दर 73 फीसदी से भी ज्यादा गिर गई. 2020 में भारत की एमएमआर 103 थी. अमेरिका की एमएमआर से कहीं ज्यादा. लेकिन जहां अमेरिका में  2000 से 2020 के दरमियान, एमएमआर 2.88 फीसदी की सालाना दर से बढ़ी, वहीं भारत में उसी अवधि में वो 6.64 फीसदी की सालाना दर से गिरी.

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर ऑफ मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ में प्रोफेसर राजीब दासगुप्ता ने बताया कि पिछले दो दशकों में भारत को ज्यादा उदार और बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के लाभ मिलने लगे थे. वह कहते हैं, "अत्यंत गरीबी में कुल मिलाकर गिरावट आई, महिला शिक्षा और महिला आय जैसे अहम निर्धारक तत्वों में टिकाऊ बढ़ोतरी हुई और बुनियादी ढांचे का विकास हुआ."

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक ये सामाजिक कारक, मातृ स्वास्थ्य में सुधार और प्रेग्नेंसी के दौरान और उसके पश्चात् मौतों को रोकने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.

दक्षिण एशिया के देशों ने पिछले 20 साल में अपनी एमएमआर में गिरावट देखी है. क्रेसवेल ने डीडब्ल्यू को बताया कि "ये वे देश हैं जहां आर्थिक विकास बेहतर ढंग से हुआ है, महिला शिक्षा बढ़ी है और दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी प्रगति हुई है, और ये सब अपनी भूमिका निभाते हैं. इन देशों ने गुणवत्तापूर्ण मातृ स्वास्थ्य सेवाओं को  सुगम बनाकर टिकाऊ राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है."

भारत में असमानता से निपटने की चुनौती

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को देश भर में समान रूप से सुधारों को फैलाने के प्रति ज्यादा राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी.

दासगुप्ता कहते हैं, "एसडीजी लक्ष्य (70 के नीचे का एमएमआर) तक पहुंचने के लिए भारत में राज्यों के बीच असमानता पर और अधिक ध्यान देना होगा." बहुत से भारतीय राज्यों ने इस मामले में टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) हासिल कर लिया है

केरल में सबसे कम एमएमआर है. उसकी 19 की दर न सिर्फ भारत में सबसे कम है बल्कि अमेरिका से भी कम है. इस परिदृश्य के दूसरे छोर पर असम राज्य है जहां मातृ मृत्यु दर 195 है. केरल की दर के 10 गुना से भी ज्यादा. लेकिन असम में भी चीजें सही दिशा में चल रही हैं. भारत में पर्यावरण और विकास नीति पर केंद्रित पत्रिका डाउन टु अर्थ ने 2022 के आखिर में अपनी एक रिपोर्ट मे बताया था कि असम की एमएमआर 2014 से 2016 के बीच 237 थी. इस लिहाज से आज उसमें एक बड़ी गिरावट तो आई ही है.

दासगुप्ता कहते हैं कि भारत सही रास्ते पर है. उसने चिकित्सा के बुनियादी ढांचे पर निवेश किया है और देश भर में चिकित्साकर्मियों की संख्या बढ़ाई है. और अब "अपनी इस सामर्थ्य को और विकसित करने का समय है."

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