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सिर्फ 10 सेकेंड में टाइप 2 डायबिटीज बताएगा एआई

१६ नवम्बर २०२३

ध्वनि विश्लेषण एआई टाइप 2 डायबिटीज का पता करने के लिए एक उपयोगी टूल हो सकता है, लेकिन इसके साथ चेतावनी भी जुड़ी है.

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वैज्ञानिकों ने एक तकनीक विकसित की है जिससे 10 सेकेंड में ही पता चल जाएगा कि किसी को डायबिटीज है या नहीं
वैज्ञानिकों ने एक तकनीक विकसित की है जिससे 10 सेकेंड में ही पता चल जाएगा कि किसी को डायबिटीज है या नहींतस्वीर: PantherMedia/picture alliance

उन्नत ध्वनि विश्लेषण का इस्तेमाल करने वाले मेडिकल डायग्नोस्टिक टूल्स तेजी से सटीक होते जा रहे हैं. स्पीच पैटर्न का विश्लेषण खासतौर पर पार्किंसंस या अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों के लिए बहुमूल्य जानकारी मुहैया करा सकता है.

वॉयस एनालिसिस का इस्तेमाल करके मानसिक बीमारी, अवसाद, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर और दिल की बीमारी का भी पता लगाया जा सकता है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई संकुचित रक्त वाहिकाओं या थकावट के लक्षणों का भी पता लगा सकती है. इससे स्वास्थ्यकर्मियों को मरीजों का जल्द इलाज करने और किसी भी संभावित जोखिम को कम करने की अनुमति मिलती है.

अमेरिका के 'मेयो क्लिनिक प्रोसीडिंग्सः डिजिटल हेल्थ' मेडिकल जर्नल में छपे एक शोध के मुताबिक किसी व्यक्ति को टाइप 2 डायबिटीज है या नहीं यह आश्चर्यजनक सटीकता के साथ निर्धारित करने के लिए आवाज की एक छोटी रिकॉर्डिंग ही काफी है.

कैसे बचें डायबिटीज से

अज्ञात रोग

इस तकनीक का उद्देश्य अज्ञात डायबिटीज से पीड़ित लोगों की पहचान करने में मदद करना है. इस नई तकनीक के जरिए दुनियाभर में ऐसे 24 करोड़ लोगों को बहुत मदद मिलेगी जो टाइप-2 डायबिटीज के शिकार हैं, लेकिन उन्हें इसका पता ही नहीं है. यह आंकड़ा इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन का है.

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट में छपे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के शोध के मुताबिक भारत के कुछ राज्यों में मधुमेह के मामले तेजी से बढ़े हैं. करीब दस करोड़ भारतीय लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं. टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में दिल से जुड़ी  बीमारियों, जैसे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

इस नई तकनीक के जरिए दुनियाभर में ऐसे 24 करोड़ लोगों को बहुत मदद मिलेगी, जो टाइप-2 डायबिटीज के शिकार हैं, लेकिन उन्हें इसका पता ही नहीं है
इस नई तकनीक के जरिए दुनियाभर में ऐसे 24 करोड़ लोगों को बहुत मदद मिलेगी, जो टाइप-2 डायबिटीज के शिकार हैं, लेकिन उन्हें इसका पता ही नहीं हैतस्वीर: Andrey Popov/imago-images

10 सेकेंड में कैसे पता चलेगा टाइप-2 डायबिटीज का

वैज्ञानिकों ने लोगों की सेहत के बुनियादी डाटा जैसे उम्र, सेक्स, ऊंचाई और वजन के साथ-साथ आवाज के छह से दस सेकेंड लंबे सैंपल लेकर एआई मॉडल विकसित किया, जिसकी मदद से पता चल सके कि व्यक्ति को टाइप-2 डायबिटीज है या नहीं.

इस मॉडल का डायग्नोसिस 89 फीसदी महिलाओं और 86 फीसदी पुरुषों के मामले में सही साबित हुआ. अमेरिका की क्लिक लैब ने यह एआई मॉडल तैयार किया है, जिसमें वॉयस टेक्नॉलजी के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके मधुमेह का पता लगाने में प्रगति हुई है.

एआईको प्रशिक्षित करने के लिए कनाडा में ओंटारियो टेक यूनिवर्सिटी में जेसी कॉफमैन और उनकी टीम ने 267 व्यक्तियों की आवाजें रिकॉर्ड कीं, जिन्हें या तो मधुमेह नहीं था या जिन्हें पहले से ही टाइप 2 मधुमेह का पता था.

अगले दो सप्ताह के दौरान प्रतिभागियों ने अपने स्मार्टफोन पर हर रोज छह बार एक छोटा वाक्य रिकॉर्ड किया. 18,000 से अधिक आवाज के नमूने तैयार किए गए, जिनमें से 14 अकूस्टिक फीचर को अलग किया गया, क्योंकि वे मधुमेह वाले और बिना मधुमेह वाले प्रतिभागियों के बीच भिन्न थे.

जेसी कॉफमैन ने कहा, "फिलहाल जो तरीके इस्तेमाल होते हैं, उनमें बहुत वक्त लगता है, आना-जाना पड़ता है और ये महंगे पड़ सकते हैं. वॉयस टेक्नॉलजी में यह संभावना है कि इन सारी रुकावटों को पूरी तरह से दूर कर दे."

वॉयस एनालिसिस के खतरे

डायग्नोस्टिक टूल्स के रूप में वॉयस एनालिसिस के समर्थक उस गति और दक्षता पर जोर देते हैं जिसके साथ रोगी की आवाज का इस्तेमाल करके बीमारियों का पता लगाया जा सकता है. लेकिन भले ही एआई समर्थित टूल्स बहुत विशिष्ट जानकारी मुहैया करने में सक्षम हों, मुट्ठी भर आवाज के नमूने एक अच्छी तरह से स्थापित डायग्नोस्टिक टूल्स विकसित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.

क्या दुरुपयोग हो सकता है

आलोचकों और डाटा सुरक्षा ऐक्टिविस्टों ने स्पीच एनालिसिस सॉफ्टवेयर के भारी जोखिम के बारे में चेतावनी दी है, उदाहरण के लिए नियोक्ताओं या इंश्योरेंस कॉल सेंटरों द्वारा इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.

एक जोखिम यह भी है कि स्पीच एनालिसिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सहमति के बिना किया जा सकता है और व्यक्तिगत स्वास्थ्य जानकारी के आधार पर ग्राहकों या कर्मचारियों को नुकसान हो सकता है.

यही नहीं संवेदनशील मेडिकल जानकारी हैक हो सकती है, उसे बेचा जा सकता है या फिर उसका गलत इस्तेमाल हो सकता है. हालांकि डायग्नोस्टिक टूल्स के रूप में स्पीच एनालिसिस पर स्पष्ट नियम और सीमाएं वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित नहीं की जा सकती हैं. यह पूरी तरह से राजनीति के दायरे में आता है.