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मांग के बोझ से दबे जर्मनी के फूड बैंक

फोल्कर विटिंग
१९ जुलाई २०२३

जर्मनी ने शरणार्थियों के लिए बाहें तो खोली हैं लेकिन इसका सामाजिक असर कई रूपों में दिखाई दे रहा है. मांग बढ़ जाने की वजह से देश में चलने वाले फूड बैंकों पर जबरदस्त दबाव है.

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खाने पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों ने लोगों की जिंदगी मुश्किल कर दी है
खाने पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों ने लोगों की जिंदगी मुश्किल कर दी हैतस्वीर: Frank Hoermann/SVEN SIMON/picture alliance

जर्मनी में 900 से ज्यादा फूड बैंक हैं जो चैरिटी संगठन टाफेल ई.वी. के तहत काम करते हैं. ये बैंक किसी भी व्यक्ति की मदद करते हैं जो यह साबित कर सके कि वह आर्थिक दिक्कतें झेल रहा है. मुसीबत यह है कि इन बैंकों को खाना दान करने वाली कंपनियों की संख्या घटती चली जा रही है जबकि मुद्रास्फीति और यूक्रेन से आए रिफ्यूजियों के चलते खाने की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है. नतीजा यह है कि फूड बैंक अब सरकारी मदद की आस लगाए बैठे हैं. इसकी एक झलक बर्लिन के कूपनिक में देखने को मिली जहां बुंडसलीगा फुटबॉल टीम एफसी यूनियन बर्लिन के फैन सेंटर को खाने-पीने का सामान बांटने का केंद्र बना दिया गया. 30 डिग्री की तेज गर्मी में, बिना किसी छाया के लोग लाइन लगाकर सामान लेने के लिए खड़े हो गए.

फूड बैंकों पर निर्भर लोगों की संख्या दोगुनी होती दिख रही है
फूड बैंकों पर निर्भर लोगों की संख्या दोगुनी होती दिख रही हैतस्वीर: DW

जर्मनी की हालतः कैसी होती है एक धनी देश में गरीबी

 महंगाई और युद्ध की मार

एक बच्चे की मां डिनीस लाउवर ने शर्म छोड़कर पहली बार फूड बैंक का रुख किया. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मैं एक बार देखना चाहती थी लेकिन काफी समय तक शर्मिंदगी महसूस करती रही. खाने के सामान की ऊंची कीमतों की वजह से जरूरतें पूरी करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है." आखिरकार उन्होंने हिम्मत की और सिर्फ डेढ़ यूरो में टोकरी भरकर सामान घर ले जाने में खुशी महसूस कर रही हैं. पिछले साल के मुकाबले जर्मनी में खाने-पीने की चीजों की कीमतों में 15 फीसदी का इजाफा हुआ है.

जर्मनी के सांख्यिकीय कार्यालय के मुताबिक देश में मुद्रास्फीति 7.3 फीसदी है. बहुत सारे परिवारों के लिए इसका मतलब है बजट में कटौती जिसकी वजह से लोगों को खाद्य बैंकों पर निर्भर होना पड़ रहा है. टाफेल के मुताबिक फरवरी में यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई के बाद, 20 फीसदी फूड बैंकों पर निर्भर लोगों की संख्या दोगुनी हो चुकी है. कूपनिक फूड बैंक में वॉलंटियर मैनेजर कैरल जीला कहती हैं, "युद्ध से पहले, मंगलवार के दिन हमारे पास 340 लोगों से ज्यादा नहीं आते थे लेकिन अब अक्सर ही 500 से ऊपर लोग आते हैं. हमारे ग्राहकों की संख्या युद्ध की वजह से बढ़ती ही जा रही है." 

यूक्रेन युद्ध और महंगाई की मार लोग ही नहीं झेल रहे बल्कि फूड बैंकों के लिए मदद देना भी मुहाल है
यूक्रेन युद्ध और महंगाई की मार लोग ही नहीं झेल रहे बल्कि फूड बैंकों के लिए मदद देना भी मुहाल हैतस्वीर: Thomas Lohnes/Getty Images

गरीब देशों के प्राकृतिक संसाधन भी छीन ले रहे विकसित देश

कोई भी व्यक्ति जिसके पास जरूरी कागजात हों, उसे सहायता मिल सकती है लेकिन कुछ फूड बैंकों ने हालात देखते हुए अब कम सामान देना शुरू किया है जबकि कईं बैंक नए लोगों को देने से मना कर रहे हैं. अपने बड़े बेटे और पति को पीछे छोड़ यूक्रेन से भागकर जर्मनी पहुंची तातियाना कुदेना के लिए हर मंगलवार को फूड बैंक से सामान लेना एक बहुत बड़ी मदद है. वह कहती हैं, "इससे मुझे काफी पैसे बचाने में मदद मिलती है. साथ ही यह मौका भी है जर्मनी और यूक्रेन के लोगों से मिलने-जुलने का."

गरीबों की जीवन रेखा

बर्लिन में टाफेल फूड बैंक की स्थापना 1993 में हुई. संस्था का कहना है कि उसकी क्षेत्रीय शाखाएं दान में मिलने वाली खाद्य सामग्री और वित्तीय सहायता के जरिए 20 लाख लोगों की मदद करती हैं. टाफेल को बड़ी सुपरमार्केट चेन जैसे रेवे, लिडल और आल्डी से भी खाने का सामान दान में मिलता है. जर्मनी के फूड बैंक गरीबों की मदद करने के लिए बने हैं जिनकी औसत आमदनी बेहद कम है. 

जर्मनी में करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं जिनके लिए फूड बैंक उम्मीद की किरण हैं
जर्मनी में करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं जिनके लिए फूड बैंक उम्मीद की किरण हैंतस्वीर: INA FASSBENDER/AFP/Getty Images

जर्मनी में 1.3 करोड़ गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं जिनके लिए ये बैंक बड़ी उम्मीद हैं लेकिन दान में मिलने वाला खाना कम होता जा रहा है. टाफेल के अध्यक्ष आन्द्रेयास श्टेफून ने डीडब्ल्यू से कहा, एक वजह यह है कि सूपरमार्केट अब ज्यादा बचत का रास्ता अपना रही हैं ताकि दिन के अंत में उनके पास ज्यादा खाना ना बचे. हम इसका स्वागत करते हैं क्योंकि इससे खाना बर्बाद नहीं होता. हालांकि फूड बैंकों को ज्यादा खाने की जरूरत है ताकि मांग के हिसाब से मदद दी जा सके.

जर्मनी में हर पांचवां बच्चा गरीबी का शिकार

श्टेफून कहते हैं कि राज्य की कमियों को दुरुस्त करना खाद्य बैंकों के बस में नहीं है. वे अपनी संस्था की स्वतंत्रता बरकरार रखना चाहते हैं लेकिन सरकार से बुनियादी मदद चाहते हैं ताकि टाफेल लोगों को मदद पहुंचाते रहें. सरकार मदद करने के लिए आगे आएगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है.