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आकार ले रही है जर्मनी की नारीवादी विदेश नीति

महेश झा
२० फ़रवरी २०२३

जर्मनी में विदेश नीति सरकार प्रमुख का जिम्मा है. चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सरकार में विदेश मंत्री ग्रीन पार्टी की अनालेना बेयरबॉक हैं. वे चाहती हैं कि विदेश नीति उनके मंत्रालय में तय हो और वे इसके लिए अहम बदलाव ला रही हैं.

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Stuttgarter Rede zu Europa
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance

ग्रीन पार्टी को शांतिवादी पार्टी माना जाता रहा है. अब तक उसका नारा था हथियारों के बिना शांति. अब ग्रीन पार्टी के नेता शांति के लिए यूक्रेन को हथियारों से लैस करने की बहस में सबसे आगे हैं. इसने खुद चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और उनकी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी को बैकफुट पर ला दिया है. वे और उनकी पार्टी यूक्रेन को हथियार देने में लगातार हिचकिचाहट दिखा रहे हैं. विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक और उनकी ग्रीन पार्टी की ओर से दबाव सिर्फ विदेश नीति और रक्षा नीति में ही नहीं है. बेयरबॉक विदेश नीति पर ग्रीन पार्टी का मुलम्मा चढ़ाना चाहती हैं और वे उसमें कामयाब भी हो रही हैं.

बेयरबॉक ने शुरू से ही विदेश नीति को नारीवादी बनाने पर जोर दिया है. अब जर्मन समाचार पत्रिका डेय श्पीगेल ने खबर दी है कि बेयरबॉक नारीवादी विदेश नीति के लिए अलग से एक राजदूत नियुक्त करना चाहती हैं. समाचार पत्रिका के अनुसार उसके पास 41 पेज का एक मसौदा मौजूद है जो नारीवादी विदेश नीति के बारे में है. इसमें बारह शीर्षकों में नारीवादी विदेश नीति की व्याख्या की गई है. इनमें से छह विदेशों में स्थित जर्मन दूतावासों की कार्यप्रणाली से संबंधित हैं और बाकी छह विदेशनैतिक कार्रवाइयों से. इसे विदेश मंत्रालय के कामकाज का दिशानिर्देश समझा जा रहा है.

क्या है नारीवादी विदेश नीति

मसौदे के अनुसार नारीवादी विदेश नीति का मकसद उन लोगों का समर्थन करना है जो अपनी सेक्सुअल पहचान, मूल, धर्म, उम्र, विकलांगता, सेक्सुअल ओरिएंटेशन या दूसरे कारणों से समाज के हाशिए पर धकेल दिए गए हैं. मसौदे में कहा गया है कि ऐतिहासिक रूप से विकसित हुई सत्ता संरचना को तोड़ा जाना चाहिए. जर्मन विदेश मंत्रालय अपने इन कदमों के जरिये न सिर्फ लैंगिक समानता को प्रोत्साहन दे रहा है बल्कि समाज में समतामूलक संरचनाएं विकसित करने में सहयोग देगा.

भारत दौरे पर अनालेना बेयरबॉक महिला कर्मियों से मिलीं
भारत दौरे पर अनालेना बेयरबॉक महिला कर्मियों से मिलीं तस्वीर: Carsten Koall/dpa/picture alliance

विदेशमंत्री बेयरबॉक ने अपनी विदेश यात्राओं पर महिलाओं और समाज के कमजोर वर्ग के लोगों से जुड़े प्रोजेक्टों को देखना शुरू किया है. पिछली दिसंबर में जब वे भारत के दौरे पर गई थीं तो विदेशमंत्री एस. जयशंकर और अन्य राजनेताओं से मिलने के अलावा उन्होंने राजधानी के पास स्थित खोरी गांव में जर्मन संस्थाओं की मदद से काम करने वाले गैरसरकारी संगठनों का काम देखा जो ऊर्जा क्षेत्र के टिकाऊ विकास के अलावा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के क्षेत्र में काम कर रहे हैं.

विशेष राजदूत की जिम्मेदारी

नारीवादी विदेश नीति की विशेष राजदूत इस मुद्दे को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए जिम्मेदार होंगी. किसी खास विषय से संबंधित राजदूत संयुक्त सचिव या उससे ऊंचे स्तर का अधिकारी होता है. मसौदे के अनुसार वह नारीवादी विदेश नीति के निर्देशों को बेहतर बनाने और उसके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होगा. इसमें विदेश मंत्रालय के अधिकारियों में जेंडर के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना और सांस्कृतिक बदलाव लाना शामिल होगा.

नई दिल्ली में जर्मन विदेश मंत्री का मेट्रो से सफर
नई दिल्ली में जर्मन विदेश मंत्री का मेट्रो से सफर तस्वीर: Kira Hofmann/photothek/IMAGO

मंत्रालय के अंदर लैंगिक समानता के मुद्दे पर अधिकारियों को संवेदन बनाने के लिए अधिकारियों की ट्रेनिंग में नारीवादी विदेश नीति के मुद्दे को शामिल किया जाएगा. दुनिया भर में प्रोजेक्टों के लिए विदेश मंत्रालय द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता भी लैंगिक समानता के मूल्यों पर आधारित होगी. दिशानिर्देश के मसौदे में कहा गया है कि भविष्य में आर्थिक संसाधनों का बंटवारा नारीवादी विदेश नीति के आधार पर होगा.

नारीवाद और विदेश नीति

जर्मनी में नारीवादी विदेश नीति के मुद्दे पर सक्रिय काम करने वालों में एक्टिविस्ट क्रिस्टीना लुंस भी शामिल है. 1989 में जन्मी 34 वर्षीया लुंस जर्मन विदेश मंत्रालय की सलाहकार रही हैं और एक्टिविस्ट के तौर पर उन्होंने नारीवादी विदेश नीति को प्रोत्साहन देने के लिए सेंटर फॉर फेमिनिस्ट फॉरेन पॉलिसी की स्थापना की है. फोर्ब्स ने उन्हें यूरोप में 30 के नीचे 30 प्रमुख लोगों में जगह दी थी जबकि फोकस मैगजीन में 2020 की 100 प्रमुख महिलाओं की सूची में रखा था.

डॉयचे वेले से जर्मन विदेश मंत्री की बातचीत

क्रिस्टीना लुंस ने 2022 में एक किताब प्रकाशित की जिसका टाइटल था, विदेश नीति का भविष्य नारीवादी है. वह शांति, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय को विदेश नीति के केंद्र में लाना चाहती हैं और मर्दानगी वाली सैनिक नूराकुश्ती की जगह सत्ता संरचना के नारीवादी विश्लेषण, शांति वार्ताओं और जलवायु न्याय की वकालत करती हैं. 2020 में दुनिया भर की सरकारों ने सैनिक सुरक्षा के लिए 2000 अरब डॉलर खर्च किए जबकि शांति मिशनों पर सिर्फ 6.5 अरब डॉलर खर्च किया गया.

नारीवादी विदेश नीति और सुरक्षा

क्रिस्टीना लुंस की संस्था ने यूरोपीय संसद पर एक स्टडी में इस बात की जांच की है कि यूरोपीय फैसलों में नारीवादी विदेश नीति पर किस तरह ध्यान दिया जा सकता है. उनका मानना है कि सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण पदों पर महिला अधिकारियों की नियुक्ति से विदेश और सुरक्षा नीति की पुरानी संरचनाओं को तोड़ने में मदद मिलेगी. इस समय सुरक्षा और प्रतिरक्षा की बात करने पर सैन्य सुरक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा की बात होती है, लेकिन नारीवादियों का मानना है कि सीमा की सुरक्षा से सीमा के अंदर रहने वाले लोगों की स्वाभाविक सुरक्षा नहीं हो जाती. उन्हें साफ पानी, रोटी, कपड़ा और मकान भी चाहिए.

लेकिन जर्मन विदेश मंत्रालय ने नारीवादी विदेश नीति से बहुत ज्यादा उम्मीद रखने के खिलाफ चेतावनी भी दी है. मसौदे में कहा गया है कि नारीवादी विदेश नीति के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है जिसकी मदद से फौरी सुरक्षा खतरों से निबटा जा सके. विदेश मंत्रालय का कहना है कि यूक्रेन के खिलाफ रूस का युद्ध दिखाता है कि लोगों के जीवन की रक्षा सैनिक साधनों से भी करनी होगा. इसलिए नारीवादी विदेश नीति का मतलब शांतिवादी होना नहीं है.