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यूरोप: महंगाई-मंदी से धुर दक्षिणपंथी पार्टियों को बड़ा फायदा

स्वाति मिश्रा
१४ फ़रवरी २०२४

जून 2024 में यूरोपीय संघ का संसदीय चुनाव होना है. कई हालिया सर्वेक्षणों से इस चुनाव में धुर-दक्षिणपंथी दलों को बड़ी सफलता मिलने का अनुमान है.

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यूरोपीय संघ, यूरोप के 27 देशों का एक संगठन है.
यूरोपीय संघ की संसद के लिए हर पांच में चुनाव होता है. इसमें ईयू देशों के नागरिक 'मेंबर्स ऑफ द यूरोपियन पार्लियामेंट' (एमईपी) बनाने के लिए अपने प्रतिनिधि चुनते हैं. तस्वीर: Pond5 Images/IMAGO

यूरोप के कई देशों में लोग महंगाई, आर्थिक मंदी और घटते जीवनस्तर से परेशान हैं. आशंका है कि ये मसले जून 2024 में होने वाले यूरोपीय संघ (ईयू) के संसदीय चुनाव में धुर-दक्षिणपंथी खेमे को बढ़त दिला सकते हैं.

कई सर्वे संकेत दे रहे हैं कि जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया समेत ईयू के कई सदस्य देशों में दक्षिणपंथी और धुर-दक्षिणपंथी रुझान से जुड़े "आइडेंटिटी एंड डेमोक्रैसी" (आईडी) समूह के राजनीतिक दलों के जनाधार में बड़ी वृद्धि हो सकती है.

आईडी यूरोपीय संसद के भीतर एक समूह है जिसमें आठ देशों के 59 सदस्य हैं. मई 2019 में हुए चुनावों के समय गठित इस समूह में जर्मनी की ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी), फ्रांस की नेशनल रैली और इटली की लेगा पार्टी शामिल हैं. यह वर्तमान यूरोपीय संसद में छठा सबसे बड़ा समूह है.

जर्मनी में भी एएफडी को बढ़त के आसार

मतदाताओं के बीच हुए कई हालिया सर्वेक्षणों से अनुमान लगाया जा रहा है कि इस चुनाव में आईडी यूरोपीय संसद का तीसरा सबसे बड़ा समूह बन सकता है. इसके अलावा एक और रुढ़िवादी समूह "यूरोपियन कंजरवेटिव्स एंड रिफॉर्मिस्ट्स" (ईसीआर) की स्थिति भी मजबूत बताई जा रही है. इसमें इटली की प्रधानमंत्री और धुर-दक्षिणपंथी नेता जॉर्जिया मेलोनी की ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी भी शामिल है. 

कंसल्टेंसी फर्म "पोर्टलैंड कम्यूनिकेशन्स" के एक हालिया सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि जर्मनी की एएफडी पार्टी का वोट शेयर 17 फीसदी तक हो सकता है. 2019 के पिछले ईयू चुनाव में एएफडी ने 11 फीसदी वोट पाए थे.

हालांकि बीते दिनों जर्मनी के कई शहरों में एएफडी के खिलाफ बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए हैं, जिनका संबंध नवंबर 2023 में हुई एक गुप्त बैठक से है. आरोप है कि एएफडी के भी कुछ लोग इस बैठक में मौजूद थे और यहां प्रवासियों को जर्मनी से निकालने की योजना पर बातचीत हुई.

फ्रांस में धुर-दक्षिणपंथी दल "नेशनल रैली" को बड़ा फायदा मिलने की संभावना है. सर्वे के मुताबिक, इसे 33 फीसदी तक वोट मिल सकते हैं. जबकि इनसेंबेल गठबंधन, जिसमें फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की रेनेजां पार्टी भी शामिल है, को बस 14 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है.

बर्लिन में 3 फरवरी को "हैंड इन हैंड" की एक रैली में जमा हुए लोग.
राजधानी बर्लिन समेत जर्मनी के कई शहरों में दक्षिणपंथी चरमपंथ के विरोध में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए. तस्वीर: Liesa Johannssen/REUTERS

प्रतिभागियों ने क्या कहा

सर्वे में फ्रांस के अलावा जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और पोलैंड के भी प्रतिभागी शामिल थे. जर्मनी, फ्रांस और इटली के प्रतिभागियों ने जीवनस्तर से जुड़ी बढ़ती महंगाई को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बताया.

इसके अलावा इमिग्रेशन भी मतदाताओं के बीच एक अहम मुद्दा है. सिर्फ पोलिश मतदाताओं को छोड़कर बाकी सभी देशों के ज्यादातर लोगों ने कहा कि उनका देश जिस राह पर बढ़ रहा है, उससे वो असंतुष्ट हैं. सबसे ज्यादा नाखुश जर्मनी और फ्रांस के लोग पाए गए.    

इससे पहले जनवरी में भी यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स नाम के थिंकटैंक ने बताया था कि ईयू के नौ देशों में धुर-दक्षिणपंथी और यूरोपीय संघ के आलोचक दल चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. इनमें फ्रांस, बेल्जियम और ऑस्ट्रिया शामिल हैं. इनके अलावा नौ अन्य सदस्य देशों में ऐसे दल वोट तालिका में दूसरे या तीसरा नंबर पा सकते हैं.

यह संभावना भी जताई गई कि लोकलुभावन वादी और यूरोपीय एकीकरण के आलोचक दलों के गठबंधन को पहली बार यूरोपीय संसद में निर्णायक भूमिका मिल सकती है. ऐसे में यूक्रेन के समर्थन समेत ईयू की कई मौजूदा विदेश नीतियों के प्रभावित होने की भी आशंका है.

दिसंबर 2023 में आए यूरोबैरोमीटर सर्वे के मुताबिक, हर चार में से तीन यूरोपियन का मानना है कि इस साल उनका जीवनस्तर घटेगा. वहीं दो में से एक प्रतिभागी की राय है कि उनका जीवनस्तर अभी ही खराब स्थिति में है. सर्वे में भाग लेने वाले करीब 37 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें अपने बिल भरने में मुश्किल हो रही है.

कोरोना महामारी के दौरान ईयू की अर्थव्यवस्था भी खासी प्रभावित हुई. एक ओर जब अर्थव्यवस्था महामारी के असर से उबर रही थी, तभी रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. इसके बाद ऊर्जा संकट खड़ा हुआ.

गैस और बिजली की कीमतें बढ़ गईं. खाद्य उत्पादों की महंगाई भी बढ़ी. लंबे इंतजार के बाद अब महंगाई कम हो रही है, लेकिन जानकारों का कहना है कि सुधारों का असर महसूस होने में अभी कुछ महीने लगेंगे. ऐसे में 6 से 9 जून को होने वाले आगामी चुनाव में इन मुद्दों के प्रभावी रहने का अनुमान है.

जैक डेलर्स इंस्टिट्यूट में राजनीति विज्ञानी थिअरे शॉपेन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "पॉपुलिस्ट ताकतों के उभार और आर्थिक-वित्तीय संकटों के बीच आपसी रिश्ता है. अभी अतिवादी दक्षिणपंथ गरीबी की भावना का मजबूती से फायदा उठा रहा है." 

यूरोपियन कमीशन कानूनों का सुझाव देता है. बाकी की दोनों शाखाएं इन पर विमर्श करते हैं और तय करते हैं कि प्रस्तावित कानून बनाए जाने चाहिए या नहीं.
यूरोपीय संघ की तीन मुख्य शाखाएं हैं: यूरोपियन कमीशन, यूरोपीय पार्लियामेंट और काउंसिल ऑफ दी यूरोपियन यूनियन.तस्वीर: Valerio Rosati/Zoonar/picture alliance

कैसे होता है ईयू का चुनाव

यूरोपीय संघ की संसद के लिए हर पांच में चुनाव होता है. इसमें ईयू देशों के नागरिक 'मेंबर्स ऑफ द यूरोपियन पार्लियामेंट' (एमईपी) बनाने के लिए अपने प्रतिनिधि चुनते हैं.

इस बार कुल 720 एमईपी चुने जाने हैं, जो पिछले चुनाव से 15 ज्यादा हैं. किस सदस्य देश से कितने एमईपी चुने जाएंगे, यह हर चुनाव से पहले तय होता है. मसलन, ईयू की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी से सबसे ज्यादा 96 एमईपी का चुनाव होगा. माल्टा से सबसे कम, बस छह एमईपी चुनकर आएंगे.

ये निर्वाचित प्रतिनिधि साझा विचारधारा के आधार पर राजनैतिक समूहों का हिस्सा बनते हैं. मौजूदा संसद में सात समूह हैं. इनमें "ग्रुप ऑफ दी यूरोपियन पीपल्स पार्टी" सबसे बड़ा समूह है. एमईपी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, मानवाधिकार, प्रवासन समेत ईयू से जुड़ी नीतियां और कानून बनाते हैं. यूरोपीय संसद ईयू का बजट और उस रकम को खर्च किए जाने की दिशा भी तय करती है.