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हुनरमंद यूक्रेनी महिलाओं को नहीं मिल रही यूरोप में नौकरी

२१ जुलाई २०२३

यूक्रेनी रिफ्यूजी अच्छी शिक्षा और ट्रेनिंग के बावजूद यूरोपीय संघ के भीतर काम नहीं तलाश पा रहे हैं. खासकर महिलाएं ऐसी नौकरियां करने को मजबूर हैं जिनमें ना पर्याप्त पैसा है और ना ही उनकी क्षमता का सही इस्तेमाल.

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यूरोपियन यूनियन में कामगारों की कमी है लेकिन रिफ्यूजियों को काम पर रखने की प्रक्रिया आसान नहीं
यूरोपियन यूनियन में कामगारों की कमी है लेकिन रिफ्यूजियों को काम पर रखने की प्रक्रिया आसान नहीं तस्वीर: Sachelle Babbar/imago images/ZUMA Wire

लाखों की संख्या में यूक्रेनी रिफ्यूजियों के आने के बावजूद यूरोपीय देश अपने यहां कामगारों की कमी को पूरा करने के इस अवसर को भुना नहीं पा रहे हैं. यह स्थिति तब है जब युद्ध की वजह से देश छोड़ने वाले बहुत से यूक्रेनी लोग बहुत पढ़े-लिखे या कुशल कामगार हैं. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई के बाद लोगों का आना यूरोपियन यूनियन (ईयू) के लिए एक मौका था. कामगारों की किल्लत से जूझती अर्थव्यवस्था को राहत देने का. हालांकि ऐसा होता नहीं दिख रहा है.

क्या हैं रुकावटें

अड़चनों की बात करें तो बच्चों की देखभाल से लेकर यूरोपीय देशों से बाहर की शिक्षा और प्रोफेशनल ट्रेनिंग को मान्यता ना देना बड़ी वजहें हैं. इस कारण रिक्तियां को भरा नहीं जा सका है. यहां आए लोग, खासकर महिलाएं निराश हैं. इनमें से बहुत सारी महिलाएं ऐसे कामों से गुजारा कर रह रही हैं जो उनकी पढ़ाई और क्षमता से बहुत नीचे हैं और इन कामों में लंबे करियर की कोई संभावना भी नही हैं.

रिफ्यूजियों को अगर यूरोप अपने समाज में समाहित करने में सफल रहता है तो कामगारों की संख्या में इजाफा करके कमी को दूर किया जा सकता है.
रिफ्यूजियों को अगर यूरोप अपने समाज में समाहित करने में सफल रहता है तो कामगारों की संख्या में इजाफा करके कमी को दूर किया जा सकता है.तस्वीर: Sachelle Babbar/ZUMAPRESS.com/picture alliance

ऐसी ही एक महिला हैं स्वेतलाना खुहिल जिन्होंने अपनी दो बेटियों के साथ यूक्रेन छोड़ने के बाद पोलैंड में एक ऑर्थोपेडिक डॉक्टर और फिजियोथेरेपिस्ट के तौर पर काम करने के लिए लाइसेंस हासिल करना चाहा. एक साल बाद उन्हें बताया गया कि उनकी एप्लीकेशन के साथ वो कागज भी चाहिए जो यूक्रेन में पीछे छूट गया. 37 साल की स्वेतलाना को अपनी ऑर्थोपेडिक डिग्री को किनारे रख, एक सामाजिक संस्था में 353 डॉलर प्रति माह पर नौकरी करनी पड़ी जो स्थानीय न्यूनतम आय का भी आधा है. वह कहती हैं, मुझे तब तक नौकरी नहीं मिल सकती जब तक मेरी डिग्री को मान्यता ना मिल जाए.

फैक्ट चेक: रिफ्यूजियों में भेदभाव करता यूरोप

इंटर्नशिप के बाद स्वेतलाना ने मेडिकल क्षेत्र से बाहर दो नौकरियां की लेकिन काम की कठिन परिस्थितियों के बीच दो बेटियों को पालना मुश्किल रहा. पोलैंड में मकान के महंगे किराये को देखते हुए वह पूर्वी जर्मनी आ गईं जहां सरकार उनका किराया देगी और जर्मन भाषा सीखने के बाद नौकरी तलाशने में मदद करेगी.

जर्मनी प्रयास कर रहा है कि आने वालों को भाषा सिखा कर लंबी अवधि के रोजगार लायक बनाया जा सके
जर्मनी प्रयास कर रहा है कि आने वालों को भाषा सिखा कर लंबी अवधि के रोजगार लायक बनाया जा सकेतस्वीर: Olaf Schuelke/imago images

मौका अब भी बाकी

पेरिस के अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक दि ऑर्गेनाइजेशन फॉर ईकॉनॉमिक को-ऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के मुताबिक, यूक्रेन से आए रिफ्यूजियों को अगर यूरोप अपने समाज में समाहित करने में सफल रहता है तो कामगारों की संख्या में इजाफा करके कमी को दूर किया जा सकता है. महंगाई को नीचे लाने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

17 महीनों से चल रहे युद्ध के बाद आए हजारों लोग किसी दीर्घकालिक रोजगार में लगने की बजाए अब भी पार्ट-टाइम या सीमित अवधि वाली नौकरियां ही कर रहे हैं. ओईसीडी में प्रवासी मामलों की जानकार एव लाउरेन कहती हैं, "मुझे नहीं लगता कि अब भी मौका निकल चुका है. यूरोपीय देशों को चाहिए कि वह इन कामगारों को बाजार में समाहित करने की कोशिश करें."

कैसा है जर्मनी का हाल

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर जर्मनी ने यूक्रेन से सबसे ज्यादा रिफ्यूजी स्वीकार किए हैं. हालांकि स्थिति यह है कि इस वक्त जर्मनी में रिक्तियों की संख्या दूसरे विश्व युद्द के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है. इसके बावजूद पांच में से केवल एक रिफ्यूजी को ही रोजगार हासिल हुआ है. जर्मनी प्रयास कर रहा है कि आने वालों को भाषा सिखा कर लंबी अवधि के रोजगार लायक बनाया जा सके. 

रिफ्यूजियों को कम पैसों वाली छोटी अवधि की नौकरियों में रहना पड़ रहा है
रिफ्यूजियों को कम पैसों वाली छोटी अवधि की नौकरियों में रहना पड़ रहा है तस्वीर: Emmanuele Contini/IMAGO

यूक्रेन युद्ध के बाद बर्लिन पहुंची ओक्साना क्रोतोवा के पास एमए की डिग्री है और वह कीव में होटल मैनेजर थी. जर्मनी पहुंच कर वह होटल रिसेपशनिस्ट के तौर पर काम कर रही हैं. क्रोतोवा कहती हैं, "युद्ध झेल रहे एक शहर में किसी को होटल की जरूरत नहीं है." 34 साल की क्रोतोवा हफ्ते में 30 घंटे काम करती हैं और जर्मन भाषा सीख रही हैं. उन्हें मालूम है कि उनकी पढ़ाई को यहां मान्यता दिलाना आसान नहीं होगा इसलिए क्रोतोवा ने बिजनेस  एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई करने का फैसला किया है जिसमें उन्हें कुछ साल लग जाएंगे.

यूएन: लाखों शरणार्थियों को स्थायी घरों की जरूरत

पॉलिसी थिंक टैंक माइनर का कहना है कि यूक्रेनी रिफ्यूजियों का जर्मनी आना एक अवसर जैसा लगता है लेकिन देश के भीतर वास्तविकता कुछ और है. उन्हें घरेलु कामगारों की तरह काम पर रखना मुमकिन नहीं है जब तक वो स्थानीय भाषा ना बोलते हों. इसके साथ ही रोजगार बदलना भी इतना आसान नहीं है. माइनर में रिसर्चर गिजेम उएंसल कहते हैं, "अगर आप पहले से 40 घंटे काम कर रहे हैं और भाषा सीखने के लिए वक्त नहीं है तो यह बहुत आम बात है कि लोग फंस जाते हैं."

युद्ध से बचकर भागे लोगों को यूरोपीय समाज में समाहित करना बड़ी चुनौती है
युद्ध से बचकर भागे लोगों को यूरोपीय समाज में समाहित करना बड़ी चुनौती हैतस्वीर: Hesther Ng/ZUMA/picture alliance

ईयू की अस्थायी योजना

रिफ्यजी लोगों की जिंदगी काफी हद तक इससे बंधी है कि यूक्रेन युद्ध कब तक चलता रहेगा. इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता. ईयू ने जो अस्थायी सुरक्षा योजना शुरू की थी, वह मार्च 2024 को खत्म होनी है. यानी समय बहुत तेजी से निकलता जा रहा है और हालात अनिश्चित हैं.

ओईसीडी के विशेषज्ञ कहते हैं कि यह समयसीमा जितनी तेजी से नजदीक आती जा रही है, उसे देखते हुए यह जरूरी है कि कोई रणनीति बनाई जाए. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कंपनियां रिफ्यूजियों को काम पर रखने से कतराती हैं. वास्तव में उन्हें नहीं पता कि वह कितने दिन तक रहेंगे. जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंप्लॉयमेंट रिसर्च के एंजो वेबर कहते हैं, "हमें जल्द नियम-कायदे बनाने की जरूरती है ताकि जो लोग यूक्रेन से युद्ध की वजह से भागे हैं, वह यहां लंबे समय तक रह सकें. इससे ना सिर्फ रिफ्यूजी लोगों के लिए बल्कि काम देने वालों के लिए भी आसानी होगी."

एसबी/एनआर (रॉयटर्स)