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क्या वाकई मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं?

साहिबा खान
२५ अप्रैल २०२४

भारत में यह आम धारणा है कि मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. प्रधानमंत्री ने भी राजस्थान की एक चुनाव रैली में इसी बात पर जोर दिया. मगर आंकड़े कुछ और कहते हैं.

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रमजान के पहले दिन कश्मीर की मस्जिद में एक पुरुष वुजू बनाते हुए | 12/03/2024 **SRINAGAR, KASHMIR
यह धारणा आम है कि मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं.तस्वीर: Yawar Nazir/Getty Images

21 अप्रैल को हुई राजस्थान की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी उन लोगों को देश के संसाधन बांटना चाहती है जो "घुसपैठिए" हैं और जिनके "ज्यादा बच्चे है." माना जा रहा है कि ये शब्द देश के मुसलमान समुदाय को संबोधित करने के लिए थे.

हालांकि यह धारणा आम है कि मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. आए दिन कोई ना कोई मंत्री या नेता इस धारणा को शब्द देकर उस पर मुहर लगा ही देता है.

जनसंख्या नियंत्रण बिल का समर्थन करने वाले बीजेपी नेता रवि किशन से लेकर मनोज तिवारी तक सभी ने किसी ना किसी रूप में ये बात कही है.

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2011 की जनगणना के बाद कोई जनगणना नहीं

आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी. इतने पुराने आकड़ों से आज की स्थिति का आकलन करना मुश्किल होगा. हालांकि, उसमें भी जानकारों ने नए तरीके निकाल लिए हैं. 'द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया' नाम की किताब के लेखक और पूर्व इलेक्शन कमिश्नर एस वाई कुरैशी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया कि उन्होंने कैसे अपनी किताब के लिए रिसर्च की. उन्होंने कहा, "यह बात किसी को नहीं मालूम कि 2011 की जनगणना के बाद अब तक नई जनगणना क्यों नहीं हुई है.” उन्होंने अपने तरीके पर चर्चा करते हुए कहा, "भले ही जनगणना ना हुई हो लेकिन हर पांच सालों में सरकार का नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे तो आता ही है. उसमें भी प्रजनन, महिलाओं और बच्चों पर आंकड़े आते हैं जो सरकारी होते हैं.”

2011 की जनगणना में मुसलमानों की जनसंख्या 17.22 करोड़ थी, जो उस समय भारत की जनसंख्या 121.08 करोड़ का 14.2 फीसदी थी.

पिछली जनगणना जो 2001 में हुई थी, उसमें मुसलमानों की जनसंख्या 13.81 करोड़ थी, जो उस समय भारत की कुल जनसंख्या 102.8 करोड़ का 13.43 फीसदी  थी.

2001 से 2011 के बीच मुसलमानों की जनसंख्या में 24.69 प्रतिशत की वृद्धि हुई. यह भारत के इतिहास में मुसलमानों की जनसंख्या में सबसे धीमी वृद्धि थी. 1991 से 2001 के बीच भारत की मुस्लिम आबादी में 29.49 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

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प्रजनन क्षमता में अंतर के कारण भारत की मुस्लिम आबादी अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में कुछ तेजी से बढ़ी है. लेकिन प्रजनन पैटर्न में गिरावट आई है.तस्वीर: Sankhadeep Banerjee/NurPhoto/picture alliance

धार्मिक समुदायों का औसत घरेलू ढांचा

नेशनल सैंपल सर्वे के 68वें राउंड (जुलाई 2011-जून 2012) के आंकड़ों के अनुसार, प्रमुख धार्मिक समूहों का औसत घरेलू ढांचा कुछ ऐसा था:

हिन्दू : 4.3

मुस्लिम : 5

ईसाई :  3.9

सिख : 4.7

अन्य : 4.1

2021 में आई प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के आंकड़ों के हिसाब से ये बात सही है कि मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर बाकी धार्मिक समुदायों से बेहतर है. लेकिन दूसरे नंबर पर हिन्दू समुदाय आता है. जैन इस मामले में सबसे नीचे आते हैं. सामान्य पैटर्न काफी हद तक वही है जो 1992 में था, जब मुसलमानों की प्रजनन दर सबसे अधिक 4.4 थी, उसके बाद हिंदुओं की 3.3 थी. लेकिन भारत के धार्मिक समूहों के बीच बच्चे पैदा करने में अंतर आम तौर पर पहले की तुलना में बहुत कम है. उदाहरण के लिए, 1992 में मुस्लिम महिलाओं को हिंदू महिलाओं की तुलना में औसतन 1.1 अधिक बच्चे पैदा करने का आकलन था, उसी आंकड़े में 2015 तक यह अंतर घट कर 0.5 हो गया था.

लेकिन कुरैशी ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि प्रजनन दर धार्मिक नहीं हो सकता है, या किसी धर्म के हिसाब से वो बढ़-घट नहीं सकता है. उन्होंने कहा, "प्रजनन दर परिभाषित करने के लिए कई चीजें ध्यान में रखनी होती हैं, जैसे कि लोगों की आय कितनी है, फिर उस पर परचेज पावर कितना है, तालीम कितनी है, किस पृष्ठभूमि से आ रहे हैं.”

उन्होंने आगे बताया, "बिहार में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय दोनों के प्रजनन दर में ज्यादा अंतर नहीं है. मगर बिहार और तमिलनाडु के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के प्रजनन दर में बहुत अंतर है, करीब 2-4 पॉइंट्स का.”

इन आंकड़ों के भारत की धार्मिक संरचना के लिए क्या मायने हैं?

भारत में कई नेताओं ने इस बात को बार-बार कहा है कि मुस्लिम समुदाय में ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं, जिसके कारण वो एक दिन हिन्दू समुदाय की आबादी को भी पीछे छोड़ देंगे. भारतीय डेमोग्राफी के बारे में बात करते हुए कुरैशी कहते हैं, "अगर आप पिछले और अभी के सभी सरकारी सर्वे और आंकड़ों को निकाल लें और गुना-भाग करें, तब आपको पता चलेगा कि भारत में मुस्लिम समुदाय अगले 600 वर्षों तक भी हिन्दू समुदाय को पीछे नहीं छोड़ सकता हैं.”

यह बात सही है कि प्रजनन क्षमता में अंतर के कारण भारत की मुस्लिम आबादी अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में कुछ तेजी से बढ़ी है. लेकिन प्रजनन पैटर्न में गिरावट और परिवर्तित होने के कारण, 1951 के बाद से जब भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहली जनगणना की थी, जनसंख्या के औसत धार्मिक ढांचे में केवल मामूली बदलाव हुए हैं.

फैमिली प्लानिंग के लिए जरूरी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 15 सालों में छोटे मुस्लिम परिवारों में बढ़त दिखाई देने लगी है, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में मुस्लिम प्रजनन दर में गिरावट देखी गई है - एक महिला के बच्चों की औसत संख्या - 2015 में 2.6 से 2019-21 में 2.4 हो गई है. हालांकि 2.4 पर यह अभी भी अन्य सभी समुदायों की तुलना में ज्यादा ही है, लेकिन 1992-93 में 4.4 से लगभग आधी हो गई है. इसके मायने हैं कि गिरावट भी सबसे तेज मुस्लिम समुदाय में ही है.

कुरैशी का कहना है, "आंकड़ों को देखा जाए और प्रजनन दर में गिरावट पर नजर रखी जाए तो मुस्लिम समुदाय भारत की फैमिली प्लानिंग स्कीम को सबसे ज्यादा अच्छे ढंग से समझ रहा है. सबसे ज्यादा गिरावट मुस्लिम समुदाय में ही आई है.”

कुरैशी का मानना है कि इसके प्रमुख कारण हैं मुस्लिम समुदाय में शिक्षित लोगों का बढ़ना. कुरैशी कहते हैं, "आप कहते हैं कि मुस्लिम ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. आप उन्हें शिक्षित बनाएं, सहूलियत मुहैया करें, और स्वास्थ्य पर काम करें तब समुदाय में इस मुद्दे को लेकर और भी ज्यादा जागरूकता आ पाएगी.”